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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। क्यों नाराज़ हो गये ?" इसी सोच-विचारमें तीन दिन बीत गये। इतने में उसे यह बात सूझ गयी, कि अवश्यही इसी लड़केने मेरे पतिका मन मेरी तरफ़से फेर दिया होगा, इसलिये अब मैं इसीकी खुशामद करूँ, जिससे मेरे पति मुझपर फिर प्रसन्न हो जायें। ऐसा विचारकर उसने एक दिन रोहकसे बड़ी मुहब्बत दिखलाते हुए कहा,-"बेटा ! तुम अपने पिताको मेरे ऊपरसे क्रोध हटा देनेको कहो। मैं तुम्हारी दासी होकर रहूँगी, जो कहोगे, वही करूंगी।" यह सुनकर बुद्धिमान् रोहक राजी होगया। इसके बाद फिर एक दिन चाँदनी रातको रोहकने पितासे कहा,-"पिताजी ! उठिये, उठिये, देखिये आज फिर वही पुरुष जाता नज़र आता है। यह सुन, पिताने कहा,-"कहाँ है, बेटा ! मुझे दिखाओ, तो सही।" यह सुन, रोहकने उसे अपने शरीरकी छाया दिखला दी। यह देख, उसके पिताने कहा, - "अरे, यह तो आदमी नहीं, शरीरकी छाया है।" रोहकने कहा, "पिताजी ! मैंने तो उस दिन भी ऐसा ही पुरुष देखा था !" यह सुनकर, रंगशूरने मनमें सोचा,-"ओह! मैं नाहक एक लड़केकी बातमें आकर अपनी स्त्रीके विषयमें शङ्का रखने लगा और व्यर्थमें उसका अपमान किया !" यह विचार मनमें उत्पन्न होते ही उसका क्रोध शान्त हो गया और वह फिर पहलेकी तरह रुक्मिणीके साथ प्रीतिका वर्ताव करने लगा। रोहक सदा अपने पिताके साथही भोजन किया करता था। यद्यपि उसकी माता उसपर भक्ति रखती थी, तथापि वह उसका विश्वास नहीं करता था। . _____एक दिन रंगशूर उजयिनी-नगरीको चला गया। उसके साथ ही रोहकने भी वहाँ जाकर सारी नगरीकी सैर की। जब ये दोनों शहरके बाहर चले आये, तब कोई काम याद आजानेसे रङ्गशूर फ़िर नगरमें / चला गया। रोहक नगरीके बाहरही क्षिप्रानदीके तीरपर बैठ रहा / बैठे-बैठे. उसने नदीकी रेतमें देव-मन्दिर आदिके सहित सारे नगरका चित्र अडित कर डाला। इसके बाद राजमन्दिरकी रक्षा करनेकेलिये P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust,
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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