SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ormmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm श्रीशान्तिनाथ चरित्र। भगवानने कहा,-"ज्ञान पाँच प्रकारका है-(१) मतिज्ञान, (2) श्रुत-ज्ञान, ( 3 ) अवधि-ज्ञान. ( 4 ) मनः पर्यवज्ञान और (5) केवल. ज्ञान। इनमें मतिज्ञानके भेद इस प्रकार हैं:-बुद्धि, स्मृति, प्रज्ञा और मति। ये सब एकही अर्थवाले पर्यायवाची शब्द हैं। तो भी बुद्धिमान् मनुष्योंने इनमें भेद रखे हैं ; जैसे, कि भविष्य-कालके ज्ञानको मति कहते हैं, वर्तमान ज्ञानको बुद्धि कहते हैं, भूतकालके ज्ञानको स्मृति कहते हैं और तीनों कालकी बातें जाननेवाला ज्ञान ही प्रज्ञा कहलाता हैं। प्राणीके मत्यावरण-कर्मका क्षय होनेपर मति उत्पन्न होती है। उसके चार प्रकार हैं-(१) औत्पातिकी, (2) वैनयिकी, (3) कार्मणकी और (4) परिणामकी। यही चार भेद बुद्धिके हैं ; पाँचवाँ भेद नहीं है। इनमें, जो वस्तु न पहले कभी देखी हो न सुनी, उसके विषयमें भी तत्काल जो बुद्धि उत्पन्न होती है,उसीको पण्डितोंने औत्पातिकी कहा है। इसी औत्पातिकी बुद्धि के विषयमें श्रीक्षेमङ्कर जिनेश्वरने रोहककी / कथा कह सुनायी। वह कथा इस प्रकार है : COG02 रोहककी कथा। JOGIOPo HOTO DOHOPRO:0000000060P उजयिनी-नामक एक बड़ी भारी नगरी है। उसमें अरिकेसरी नामके राजा रहते थे। उस नगरीके पासही एक बड़ी भारी शिला रखी हुई थी, जिसके निकट ही नटग्राम नामका एक छोटासा गाँव बसा हुआ था। उसमें रंगशूर नामका एक नट रहता था। उसके पुत्रका नाम रोहक था। वह बच्चेपनसेही बहुतसी कलाओंमें निपुण हो गया था और बुद्धिमें बृहस्पतिके ही समान था। जब वह लड़का ही था, तभी उसकी माँ मर गयी थी, इसलिये उसके पिताने रुक्मिणी नामकी एक दूसरी स्त्रोसे विवाहकर लिया था। यह स्त्री यौवनके मदसे उन्मत्त P.P. Ac. Gurratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy