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________________ e nnnnnnn nonno Arror चतुर्थ प्रस्ताव / 181 देता, जिससे अपने जीका दुखड़ा कह सुनाऊँ ?" पुण्यसारने कहा, ' "मित्र ! तुम्हारी इस हरकतसे सब लोग तुम्हारी निन्दा करेंगे।” यह / सुनकर उसने जो पुण्यसारको भलीभाँति पहचाना तो वही उसका पति मालूम पड़ा। इसपर उसने मुसकरा कर उसका लिखा हुआ श्लोक उसे सुनाया और पूछा यह श्लोक तुम्हाराही लिखा हुआ है या नहीं ? यह सुन उसने सिर हिलाकर हामी भर दी। तब वह बोली "मैं तुम्हारी वही प्रियतमा स्त्री हूं, जिसे तुम घरके दरवाजेके पास छोड़कर भाग आये थे। मेरा नाम गुणसुन्दरी है। हे स्वामी ! यह सारा प्रपंच मैंने तुम्हारे लियेही रचा था। अब तुम कृपाकर जल्दीसे मेरे लिये स्त्रीका पहनावा मंगवा दो।" यह सुन पुण्यसारको बड़ा अचम्भा हुआ। इसके बाद उसने अपने घरसे स्त्रियोंके पहनने योग्य बढ़िया-बढ़िया पोशाक वगैरह मँगवा कर उसे दे दिया। वह उन सब चीजोंको पहनकर ख़ासी स्त्री बन गयी। ___ अबके पुण्यसारने राजा आदि गुरुजनोंसे कहा,-"आपकी बहू आपलोगोंको प्रणाम करती है।” उसके इतना कहते ही गुणसुन्दरीने राजा और अपने श्वशुरको प्रणाम किया। यह देख, राजाने पूछा,"पुण्यसार ! यह क्या मामला है।" इस पर उसने राजा तथा समस्त नगर-निवासियोंके समक्ष अपनी आश्चर्य-पूर्ण कथा आदिसे अन्त तक कह सुनायी। सब सुन कर लोग बड़े अचम्भेमें आये और पुण्यसारके पुण्योंकी प्रशंसा करने लगे। इसके बाद सेठ रत्नसारने राजासे फ़र्याद की,-"हे स्वामी ! मेरी पुत्रीने जिसके साथ विवाह किया था, वह तो स्वयं स्त्री निकली उसकी क्या गति होगी ?" यह सुन, राजाने कहा,“सेठजी ! इसमें पूछनेकी कौन सी बात है ? वह भी इसी पुण्यसारकी स्त्री होगी।” राजाकी इस आज्ञाके अनुसार रत्नसुन्दरी भी पुण्यसा. रकी ही स्त्री बन गयी / इसके बाद पुण्यसारने वल्लभीपुरसे बाकी छः स्त्रियों को भी अच्छा दिन देखकर, बुलवा लिया। इस प्रकार उसके आठ स्त्रियाँ हुई। लोग उसके पुण्योंकी बार-बार बड़ाई करने लगे। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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