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________________ namunavenmanarinnar चतुर्थ प्रस्ताव। ... 177 ड़ियोंसे राजाका वह अलङ्कार मांग लिया और लाकर पिताके हवाले. किया। वह उसे ले जाकर राजाको दे आया / इसके बाद पुण्यसारने / सब गुणों को धूल मिला देनेवाले जुएको एक दम तिलांजलि दे दी और. अपनो दूकान पर बैठकर ठोक-ठिकानेसे व्यापार चलाने लगा। .. इधर स्वामीको नहीं आया देख, गुणसुन्दरीने ऊपर जाकर अपनी बड़ी बहनोंसे कहा,-"बहुत देर हो गयी; पर वे अभीतक लौटकर नहीं आये, इसलिये मुझे तो ऐसा मालूम होता है, कि वे शौचके बहाने कहींको चल दिये / यह सुन, सव स्त्रियाँ दुःखित होकर रोने लगीं। इनका रोना सुन, पिताने उनके पास आकर उनके रोनेका कारण पूछा। उन्होंने कहा - "पिताजी ! हमारे स्वामी हमें छोड़कर न जाने कहाँ चले गये !" यह सुन, पिताने कहा, तुम इतनी जनी यहाँ इकट्ठी थीं, तो भी उसे पकड़ कर न रख सकी और बिना कुल-परम्परा दिका हाल. पूछे ही जाने दिया ! मनोहर स्त्रियोंको पाकर भला कौन पुरुष मुग्ध नहीं. होता ? फिर तुम्हें पाकर भी वह कैसे यहाँसे चला गया ? वह अपने शरीर परके कुल अलङ्कार लिये हुये चल दिया है / इससे तो मुझे मालूम पड़ता है, कि उसे किसी व्यसनका चस्का ज़रूर है। खैर, जब यह देवताका भेजा हुआ तुम्हारा स्वामी होकर यहाँ आया था, तब यह भी कुछ पूर्व जन्मके कर्मों का ही दोष होगा। परन्तु तुम लोगोंने उससे बातें कर, उसका नाम ग्राम क्यों नहीं पूछ लिया ?" पिताकी यह बात सुन, गुणसुन्दरीने कहा,-"उन्होंने जाती दफ़े दीवेके उजेलेमें चौकठके ऊपर न जाने क्या लिख दिया है—मैंने उसे पढ़ा नहीं है।" इसी तरह बातें करते-करते प्रातःकाल हो गया। उस समय उसकी लिखावटको पढ़कर गुणसुन्दरीने पितासे कहा,-"पिताजी ! हमारे वे स्वामी. गोपालकपुरके रहने वाले हैं / दैवयोगसे रातको यहाँ आ पहुंचे थे और हमारे साथ व्याह कर फिर वहीं चले गये हैं / इसलिये आप अपने हाथों मुझे पुरुषकी पोशाक पहना दीजिये / मैं अपने साथ पूरा काफ़िला लेकर गोपालकपुर जाऊँगी और उन्हें पहचान कर छः महीनेके अन्दर उन्हें P.P.AC.Sunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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