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________________ 170 श्रीशान्तिनाथ चरित्र है। इसलिये चलो, वहींका तमाशा देखा जाये और अपने निवास-रूप इस वृक्षको भी साथ ले चलो।" .. देवियोंकी यह बात सुन,वृक्षके कोटरमें बैठे हुए पुण्यसारने सोचा,-- "चलो, इसी सिलसिलेमें मैं भी यह तमाशा देख लूंगा।” वह यह सोचही रहा था,कि उन देवियोंने हुंकार कर,झटपट उस वृक्षको उखाड़ डाला और क्षणभरमें उसे लिये हुई वल्लभीपुरके बाग़में उतर पड़ी। इसके बाद दोनों देवियां,साधारण स्त्रोका वेश बना,गाँवमें घुस पड़ी। वृक्षके कोटरसे निकलकर पुण्यसार भी उनके पोछे-पीछे चला। इधर लम्बोदरके मन्दिरके द्वारपर विवाह-मण्डप तैयार कर, उसके अन्दर वेदिका बनवाये और सब आत्मीय-खजनोंको इकट्ठा किये हुए वह सेठ अपनी सातों कन्याओंके साथ बैठा हुआ था / इतनेमें वे देवियाँ उस सेठके घर रसोई जीमने आयीं। सेठने उनके पीछे-पीछे पुण्यसारको जाते देखा / देखते ही उसका हाथ पकड़, उसे श्रेष्ठ आसन पर बैठाते हुए सेठने कहा, "हे भद! . लम्बोदरने तुम्हें आज यहाँ मेरा जमाई होनेके लिये भेजा है, इसलिये तुम मेरी इन सातों कन्याओंका पाणि-ग्रहण करो।” यह कह, सेठने उसे वरके कपड़े पहनाये और लाख रुपये मूल्यके गहनोंसे अलङ्ककृत कर दिया। इसके बाद धवल-मङ्गलके साथ अग्निको साक्षी देकर शुभमुहूर्तमें पुरन्दरपुत्र पुण्यसारने उन सातों कन्याओंका पाणिग्रहण किया। उस समय उसने अपने मनमें विचार किया,-"ओह ! पिताने जो मुझे घरसे निकाल बाहर कर दिया, वह बहुत ही अच्छा किया, नहीं तो मेरे पुण्यका प्रभाव कैसे प्रकट होता ?" इसके बाद विवाहकी सब रस्में पूरी होजाने पर सेठ, बड़ी धूमधामके साथ अपनी कन्याओंके साथ-साथ पुण्यसारको भी अपने घर ले आया और अपने मकान की सबसे ऊपरवाली मंज़िलपर. उनका डेरा डाला। . उन सातों कन्याओंने पुण्य-सारको पलङ्ग पर बिठा, आप नीचे रखे हुए आसनोंपर बैठकर पूछा,-"हेनाथ! आपने कितना कलाभ्यास P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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