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________________ चतुर्थ प्रस्ताव। "पिताजी ! आप जो कहते हैं, वह ठीक है, पर यदि मैं उसके साथ व्याह करूँगा, तभी तो मेरी प्रतिज्ञा पूरी होगी, नहीं तो झूठी पड़ जायेगी।" / पिताको यह उत्तर देकर पुण्यसार उसकी प्राप्तिके लिये दूसरा उपाय सोचने लगा। __ एक दिन पिताकी बातसे उसे मालूम हुआ, कि उसकी कुलदेवी बड़ी जागती देवी हैं। इसलिये उसने एक शुभ दिवसको पुष्प, नैवेद्य, . धूप और विलेपन आदि उत्तमोत्तम सामग्रियोंसे उनकी पूजाकर, उसने प्रार्थना की,-"हे कुलदेवी ! जैसे तुमने सन्तुष्ट होकर मेरे पिताको मुझे पुत्र-रूपमें दान किया है, वैसेही मेरे स्त्री-सम्बन्धी मनोरथको भी पूरा कर दो। हे देवी! यदि तुमने मेरा मनोरथ ही पूर्ण नहीं किया, तो फिर जन्म काहेको दिया ? हे देवी! अब जबतक तुम मेरा मनोरथ नहीं पूरा करोगी, तबतक मैं बिना खाये-पिये यहीं खड़ा रहूँगा।” यह कह, वह देवीके सामने धरना देकर बैठ रहा। एकही दिनके उपवाससे देवी उसपर प्रसन्न हो गयी और बोलीं,-"बेटा ! जाओ-धीरे-धीरे सबकुछ तुम्हारे मनके मुआफ़िक ही हो जायेगा। चिन्ता न करो।" यह सुन, पुण्यसारको बड़ा आनन्द हुआ और उसने पारणा कर, पिताकी आज्ञा ले, पाठशालाकी शेष शिक्षा पूरी करनी शुरू की। क्रमशः कलाभ्यास सम्पूर्ण होनेपर वह जब युवावस्थाको प्राप्त हुआ, तब उसे जुएका चसका लग गया। स्नेहके कारण उसके माता-पिताने उसे कितनीही बार रोका-टोका, तोभी वह जुएकी चाट नहीं छोड़ सका। एक दिन पुण्यसार लाख रुपया जुएमें हार गया। उसने घर आकर लाख रुपये कीमतका एक गहना, जो राजाका था और सेठके घर रखा हुआ था, . लेकर जीते हुए जुआड़ियों को दे दिया। कुछ दिनों बाद जब राजाने अपना वह गहना सेठसे फिरता माँगा, तब सेठने उसे उस स्थानमें नहीं पाया, जहां उसने रख छोड़ा था। तब उसने अपने मनमें सोचा,"ज़रूर ही पुण्यसार वह गहना ले गया है। गुप्त स्थानमें रखी हुई चीज़का दूसरेको क्या पता है ?" इस तरह सोच कर वह समझ गया / कि P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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