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________________ चतुथ प्रस्ताव / बाद ज़ोरकी हवा चली और सारे बादल टुकड़े-टुकड़े होकर उड़ गये। यह देख, उन्हें तत्काल वैराग्य उत्पन्न हो गया और उन्होंने विचार किया,- "इस संसारमें धन, यौवन आदि सभी वस्तुएँ इन्हीं बादलों की तरह चंचल हैं / मैंने अज्ञानतासे परायी स्त्रीका हरणकर, क्षण भर •के सुख के लिये, बहुत बड़ा पाप कमाया / अतएव अब मैं प्रव्रज्या अङ्गीकारक और तप-नियम रूपी जलसे पापरूपी मैलको धोकर अपनी आ. त्माको निर्मल कर लूँ, तो ठीक हो। " इस प्रकार विचार कर राजा नलिनीकेतुने अपने पुत्रको राज्य पर बैठाकर राजलक्ष्मीका त्याग कर दिया और क्षेमकर जिनेश्वरके पास जाकर प्रव्रज्या अङ्गीकार कर ली। इसके बाद निरतिचारके साथ उसका पालन करते हुए, केवल-ज्ञान प्राप्त कर, समस्त कर्म-मलका प्रक्षालन कर,उन्होंने मोक्षपद प्राप्त किया। वही प्रभङ्करा सुव्रता नामकी गुरुआनीके पास जा, चान्द्रायण-तप कर, आयु पूरी होने पर मर कर तुम्हारी पुत्री शान्तिमती हुई है। इसके पूर्व जन्मके पति इस विद्याधरने इसे विद्याकी साधना करते देखा और पिछली प्रीतिके कारण इसे हर लाया। इसलिये हे पवनवेग! तुम इस पर नाराज़ मत हो और हे शान्तिमती ! तूभी अपना क्रोध त्याग कर।" ... वज्रायुध चक्रवर्तीकी यह बात सुन, दोनों विद्याधर और बालिका शान्तिमतीने परस्पर एक दूसरेसे अपराध क्षमा कराया और चित्तको शान्त किया / तदनन्तर चक्रवर्तीने सभासदोंकी ओर देखकर कहा,"मैंने इन तीनोंके पूर्व भवकी बात कही, अब इनके भावी स्वरूपकी बात कहता हूँ, सुनो। इन दोनों विद्याधरोंके साथ यह शान्तिमती दीक्षा• ग्रहण करेगी और रत्नावलो-तप कर अन्तमें अनशन द्वारा मृत्युको प्राप्त होकर दोसे अधिक सागरोपमकी आयुवला और वृषभ-वाहन इशानेन्द्र होगी। पवनवेग और अजितसेन साधु इसी भवमें घाती-कर्मोंका नाश कर, उत्तम केवल-शानको प्राप्त करेंगे। उस समय ईशानेन्द्र वहाँ आकर उनके केवल-ज्ञानकी महिमा बखानेंगे और अपने शरीरकी पूजाकर, अपने स्थानको चले जायेंगे। वे ईशानेन्द्र भी आयुष्य भय होनेपर वहाँसे P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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