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________________ चतुर्थ प्रस्ताव। . 156 व्यंतरी (प्रेतिनी ) हो गयी। इसके बाद अपना पुराना वैर यादकर वह सर्पके शरीरमें पैठी और तुम्हारे शयन-मन्दिरमें चली आयी। ( तुम्हारी कुलदेवीने पिशाचका रूप धारण कर तुम्हारे कल्याणके लिये यह सारा वृत्तान्त देवराजको सुना दिया। यद्यपि देवशक्तिका मनुष्यको पता नहीं लगता, तथापि भाग्यवान् पुरुषोंका तेज (पराक्रम) उस शक्तिका उल्लंघन कर सकता है। इसी लिये क्रूर प्रेतिनीका आश्रय बने हुए उस साँपको भी बलवान् देवराजने बड़ी आसानीसे मार डाला।" यह सारा वृत्तान्त सुन, राजाने फिर सूरिको प्रणामकर कहा,"हे प्रभो ! चूँकि मैंने बड़े भाग्यसे इस कष्टसे छुटकारा पाया है, इस लिये मुझे अब पुण्य कार्य करने चाहिये।" यह कह, उन्होंने बड़ी धुम धामसे सूरि-महाराजसे चारित्र ग्रहण कर लिया। इसके बाद उन्होंने प्रति बोधके निमित्त श्री-संघके समान ही उन्हीं गुरुके मुंहसे ज्ञाता-धर्म कथा नामक " : सिद्धान्तमें कहा हुआ मनोहर भावी कथानक सुनाया, जो इस प्रकार है:__"मागध देशकी राजगृह नामकी नगरीमें धन नामका एक सेठ रहता था। जिसकी समृद्धि कुबेरके ही समान थी / उसकी पत्नीका नाम धरणी था। उसके गर्भसे उसके क्रमशः चार पुत्र हुए, जिनके नाम / धनपाल, धनदेव, धनपति और धनरक्षित थे। उनकी शादी क्रमसे ऊर्जिका, भोगिका, धनिका और रोहिणी नामकी चार स्त्रियोंसे हुई , थी। एक दिन सेठने रातके पिछले पहर सोकर उठने पर विचार किया,--"इन चारों बहुओंमें से कौन घरका काम काज चलानेमें समर्थ है , उसे ढूंढ़ निकालना चाहिये। बड़े-बड़े शास्त्रवेत्ता कह गये हैं, कि पुरुष चाहे लाख गुणोंका आधार हो; पर गृहिणीकी ही बदौलत घर : चलता है। कहा भी है, कि-- "भुक्ते गृहजने भुक्ते, सुप्ते स्वपिति तत्र या। जागति प्रथमं चास्मात्, सा गृहश्री न गेहिनी // 1 // " . अर्थात----"जोः धरवालोंके खा-पी चुकने पर खाती है, उनके : P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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