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________________ 142 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। कैदखाने भिजवा दिया / एक दिन रातके पिछले पहरमें . कैदखाना तोड़, वहाँके पहरेदारको मार, यह चोर वहाँसे निकल भागा। हम लोग यह ख़बर पातेही उसके पीछे-पीछे दौड़ पड़े। इसी समय यह चोर इस सरोवरके पास घने जङ्गलमें जा दबका। अब यह वहाँसे निकलकर आपकी शरणमें आया है, इसलिये आप इस राज- " द्रोहीको कदापि अपनी शरणमें न रखिये।” पहरेदारोंकी यह बात सुन, काफ़िला-सरदारने कहा, –“हे राजपुरुषो! तुम लोगोंने जो बात कही, वह तो ठीक है ; पर अच्छे मनुष्य कभी शरणमें आये हुए मनुष्यको नहीं त्यागते / " सिपाहियोंने कहा,-"आप चाहे जो कहें ; पर हमलोग तो राजाकी आज्ञाके अनुसार काम करते हैं, हमें दूसरा कुछ नहीं मालूम।" तष सार्थपतिने कहा,-"अच्छा, तो मैं राजाके पास चलकर अपनी बातें कह सुनाता हूँ।" यह कह, वह राजाके पास गया और एक अमूल्य रत्नोंका हार, राजाकी भेंट कर उनके निकट बैठ रहा। राजाने उसका बड़ा आदर-मान कर, पूछा,- "हे सार्थपति ! तुम कहाँसे चले आ रहे हो ?" इसपर उसने उन्हें अपना सारा हाल सुनाकर कहा,-“हे महाराज! यदि आपका गहना आपको मिल गया हो, तो मेरी शरणमें आये हुए इस चोरको आप माफ़ कर दें।" राजाने कहा,-'गहना मिल जाने पर भी यह वध करनेही योग्य था। तो.भी मैं तुम्हारी प्रार्थना सुनकर, इसे छोड़े देता हूँ।" यह सुन, राजाको प्रणामकर, यह कहते हुए, कि आपने मेरे ऊपर बड़ी भारी कृपा की, वह उस चोरको साथ लिये हुए अपने स्थानको चला गया। राजाके आदमियोंके कहे अनुसार सिपाही अपने-अपने स्थानपर चले गये। इसके बाद उस सेठके बेटेने उस चोरको भोजन आदि कराने के बाद कहा,-"देखो, अब आजसे तुम किसी दिन चोरी न करना।" यह सुन, चोरी न करनेका निश्चय कर, उसने.सेठसे कहा,- “सेठजी ! अब आजले मैं आपकी कृपासे कभी चोरी न करूंगा और परलोकमें हित करनेवाले व्रतको ग्रहण करूंगा; परन्तु मेरे पास एक साधुका दिया हुआ, बड़े विकट प्रभावशाली भूतोंका: P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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