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________________ धीशान्तिनाथ चरित्र। और उन दोनों टुकड़ोंको एक स्थानपर छिपाकर रख दिया। इसके बाद वह फिर अपने स्थानपर आकर सावधानीके साथ पहरा देने लगा / इसी समय उसने देखा, कि रानीकी छाती पर साँपके रुधिरकी बूंदें / पड़ी हैं। यह देख, यह सोचकर कि कहीं इससे रानीके शरीर में विषका प्रवेश न हो जाय, उसने हाथसे उन बूंदोंको पोंछ दिया / इसी समय एकाएक राजाकी नींद टूट गयी और उन्होंने देवराजको रानीके स्तनोंपर हाथ फेरते देखा / इससे क्रोधमें आकर उन्होंने विचार किया,"इस दुरात्माको मार ही डालना चाहिये / " फिर विचारा,- “घह बलवान् है, इसलिये मैं इसे अकेला ही नहीं मार सकूँगा। अतएव और ही किसी उपायसे इस विश्वास-घातकको मार डालना चाहिये / " शास्त्र में भी कहा हुआ है,_ "आयुषो राज-चित्तस्य, धनस्य च घनस्य च। तथा स्नेहस्य देहस्य, नास्तिकालो विकुर्वताम् // 1 // " अर्थात-- "अायु, राजाके चित्त, धनं, मेघ, स्नेह और देह--- इन चीजोंमें विकार होते देर नहीं लगती।" - क्रोधित राजा सोयेही हुए थे, कि इसी समय घडियालने रातके पहले पहरकी घंटी बजायी / बस, देवराजने अपनी जगह पर अपने छोटे भाई वत्सराजको बैठा दिया और आप अपने स्थानको चला गया। उस समय राजाने पूछा,-"इस समय पहरे पर कौन है ?" उसने कहा,"मैं हूँ-आपका सेवक, वत्सराज / " राजाने कहा, "हे वत्सराज ! क्या तुम मेरी एक आज्ञाका पालन करोगे?" उसने कहा,-"स्वामिन् / आपको जो कुछ आज्ञा होगी, उसका मैं अवश्य पालन करूँगा-शीघ्र आज्ञा दीजिये।” राजाने कहा,-"यदि ऐसी बात है तो जाओ, अपने भाई देवराजका सिर काट लाओ।" उसने कहा,-"बहुत अच्छा" और यह कहनेके साथही राजमन्दिरसे बाहर निकलकर अपने मनमें विचार करने लगा,-"अवश्यही आज देवराजने ऐसा कोई काम किया होगा, जिससे राजा इतने नाराज़ हैं और वह काम अवश्यही शरीर, PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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