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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। समय खड्ग और ढाल हाथमें धारण किये हुए अनन्तवीर्यने अपने सामने चले आते हुए दमितारिके ऊपर चक्र चलाकर उन्हें मार गिराया। उसी समय देव-यक्षादिकोंने अनन्तवीर्यके ऊपर फूलोंकी वर्षा करते हुए सबको सुना-सुनाकर ऊँचे स्वरसे कहा, "यह अनन्तवीर्य अर्धविजयके स्वामी वासुदेव और इनके भाई अपराजित बलदेव हुए हैं / इसलिये इनकी चिरकाल जय हो।” इसके बाद सब विद्याधर-वीरोंने वासुदेवको प्रणाम कर, उनकी अधीनता स्वीकार ली और वासुदेवने भी उनका भली भाँति सत्कार किया। तदनन्तर राजा अनन्तवीर्य और अपराजित सब विद्याधरोंके साथ मनोहर विमानपर चढ़कर अपने नगरकी ओर चले। मार्गमें जाते-जाते जब वे कनकाचल-पर्वतके समीप (मार्गमें मेरु-पर्वत किस तरह आया ?) आये, तब विद्याधरोंने उनसे कहा,- "हे स्वामी इस महागिरिके ऊपर जिनेश्वरके चैत्य हैं / इसलिये वहाँ चलकर भगवान्को प्रणाम कर आगे बढ़ना चाहिये / कारण, तीर्थका उल्लङ्घन नहीं करना चाहिये / यह सुन, र तत्काल ही अपराजित और अनन्तवीर्य विमानसे उतरकर हर्ष और भक्तिके साथ तीर्थकी वन्दना करनेके बाद चारों ओर दृष्टि दौड़ाने लगे। . इसी समय उन्होंने चैत्यके मध्यमें कीर्तिधर नामक महामुनिको देखा। उस समय विद्याधरोंने कहा, "हे स्वामी ! ये महामुनि साल भरका उपवास लेकर कर्मोंका क्षय कर केवल-ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं, इसलिये आप इनके चरणोंकी वन्दना कीजिये।" यह सुनतेही उन्होंने परिवार सहित बड़े आनन्दके साथ उन केवलीकी वन्दना की और शुद्ध पृथ्वीपर बैठकर केवलीकी मनोहर वाणी श्रवण करने लगे। केवली ने कहा, मिथ्यात्वविरतिश्च, कषाया दुःखदायिनः / ... प्रमादा दुष्टयोगाश्च, पञ्चैते बन्धकारणम् // 1 // अर्थात- "मिथ्यात्व, अविरति, कषाय, प्रमाद और दुष्ट योग ये पाँचों बन्धनके कारण और परिणाममें दुःख देनेवाले हैं।" "हे भव्य प्राणियो ! ये पांचों सांसारिक जीवोंके कर्मबन्धके कारण P.PAC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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