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________________ तृतीय प्रस्ताव। 103 - इसके बाद समय पूरा होनेपर रानी रत्नमञ्जरीके पुत्र उत्पन्न हुआ। उसका नाम वही रखा गया, जो गुरुने बतलाया था। धात्रीसे पालित होता हुआ वह राजकुमार क्रमशः बाल्यावस्था बिताकर, बहत्तर कलाओंका अभ्यास कर, राज्यका भार सँभालने योग्य हो गया / इसी समय एक दिन वही गुरु फिर वहाँ पधारे। मालीने आकर राजासे गुरुके आगमनकी बात कही। बस उसी समय राजाने अपने पुत्रको राज्यका भार सौंप, रानीके साथ ही वैराग्यको दीक्षा ग्रहण कर ली। धर्मघोष सूरिने राजा और रानीको प्रव्रज्या देकर प्रतिबोधके निमित्त सभाके समक्ष इस प्रकारकी शिक्षा दी,-"इस संसार-रूपी समुद्रको तरनेके लिये यह दीक्षा नौकाके समान है और बड़े पुण्यसे प्राप्त होती है। इसे प्राप्त कर जो जीव विषयोंके लोभमें पड़ता है, वह जिनरक्षितकी तरह घोर संसार-सागरमें पड़ता और जो प्राणी प्रार्थना करने पर भी विषयसे विमुख रहता है, वह जिनपालितके समान सुखी होता है / " यह सुन, राजर्षि अमरदत्तने गुरुसे पूछा,-"जिनरक्षित और जिन पालितने किस प्रकार सुख और दुःख पाया, इसका हाल कृपाकर बतलाइये / " यह सुन, गुरुने सिद्धान्त ग्रन्थोंमें कही हुई उनकी कथा इस प्रकार कह सुनायो: * जिनरक्षित और जिनपालितकी कथा - चम्पापुरीमें जितशत्रु नामके राजा थे। उनकी रानीका नाम धारिणी था। उसी नगरमें माकन्दी नामका एक धनी सेठ रहता था / वह शान्त, सरल-हृदय, और उदार बुद्धिवाला मनुष्य था। उसकी स्त्री का नाम भद्रा था। उसके दो लड़के थे, जिनमें एकका नाम जिनरक्षित और दूसरेका जिनपालित था। वे जब युवावस्थाको प्राप्त हुए, तब जहाज़ पर चढ़कर परदेश जाने और धन कमाने लगे। इस प्रकार उन्होंने ग्यारह बार समुद्र-यात्रा सानन्द सम्पन्न कीऔर धन भी खूब कमाया। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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