________________ तृतीय प्रस्ताव। भार ले लें, तो मैं सोपारक जाकर उस कारीगरसे पूछू, कि उसने यह मूर्ति अपनी बुद्धिसे बनायी है अथवा किसीके रूपको देखकर उसीके अनुरूप गढ़ डाली है ? यह बात मालूम होनेपर यदि उसने किसीको देखकर यह मूर्ति गढ़ी होगी,तो मैं उसका पता लगाकर अपने मित्रकी इच्छा पूर्ण करनेका प्रयत्न करूँगा।" यह सुन, सेठने अमरदत्तकी रक्षाका भार अपने ऊपर ले लिया। तब अमरदत्तने कहा,"मित्र ! मैं जिस समय यह बात जान जाऊँगा, कि तुम कष्टमें पड़े हो, उसी समय प्राण दे दूंगा।" मित्रानन्दने कहा, "मित्र यदि मैं दो महीने तक न आऊँ, तो समझ लेना, कि मेरी मृत्यु हो गयी।" ___इस प्रकार बड़ी-बड़ी मुश्किलोंसे उसे समझा-बुझाकर, अमरदत्त को सेठके हाथोंमें सौंप, दिन-रात चलता हुआ मित्रानन्द क्रमसे सोपारकपुर पहुँच गया। वहाँ अपनी अंगूठो बेचकर उसने योग्यताके अनुरूप वस्त्रादि लेकर धारण किये और हाथमें ताम्बूलादिक लिये हुए उस कारीगरके घर गया। कारीगरने उसे धनवान समझकर उसकी बड़ी आवभगत की। इसके बाद उसे उत्तम आसन पर बैठा कर उससे आनेका कारण पूछा। तब मित्रानन्दने कहा,-"भाई ! मुझे तुमसे एक महल बनवाना है। यदि तुम्हारे पास तुम्हारी कारीगरीका कोई नमूना हो, अथवा तुमने कहीं प्रासाद बनाया हो, तो मुझे दिखलाओ।" इसपर सूत्रधारने कहा,-"सेठजी ! पाटलिपुत्र-नगरके बाहरवाले उद्यानमें जो प्रासाद है, वह मेरा ही तैयार किया हुआ है। आपने उसे देखा है या नहीं ? " मित्रानन्दने कहा,-"हाँ उसे तो मैंने हालही में देखा है , परन्तु उस प्रासादमें जो एक जगह एक पुतली है, वह तुमने किसीका रूप देखकर गढ़ी है, या योंही अपनी कला-कुशलता का चमत्कार दिखलाया हैं।” कारीगरने कहा,--" अवन्ती नगरीके राजा महासेन की पुत्री रत्नमञ्जरीका रूप देख करही मैंने वह पुतली गढ़ी है।" यह सुन, मित्रानन्दने कारीगरसे कहा,- “बहुत अच्छा। अय मैं चलता हूँ और एक अच्छा दिन देखकर तुन्हें महलके काममें P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust