________________ विक्रम चरित्र आनंद से भरा हुआ जावडशाने श्री शत्रुजय महातीर्थ का उद्धार कर सदा के लिये रक्षण की व्यवस्था करने का मन से निर्णय किया. किन्तु कुदरतने और ही सोचा था, अपना निर्णय पूर्ण करने की तैयारी करे उसके पहले ही हर्षावेश में वहीं पर जावडशाह और उनकी पत्नी का यकायक देहान्त हुआ. तीर्थ का पुनरुद्धार करने से उनकी कीर्ति पुष्प की सुगंध की तरह चोदिश प्रसर गई. उन्होंने परलोक के लिये बहोतसा पुण्य इकट्ठा कर परलोक प्रयाण किया. सुनने में आता है कि, यह तीर्थोद्धार के समय में महाराजा विक्रमचरित्र वहां हाजर थे, उन्होंने भी तीर्थोद्धार के शुभ कार्य में सहयोग और धन व्यय ठीक किया था. और गुरुदेवों के मुखसे श्री जिनेश्वर भगवान द्वारा कथित धर्म को सुन कर विक्रमचरित्र भी धर्म में प्रवृत्त-उद्यत हुआ और शत्रुजय महातीर्थ में श्री विक्रमादित्य महाराजा द्वारा कराये हुए श्री युगाधिश के मंदिर में जाकर जिर्णोद्धार कराया और श्री ऋषभदेव भगवान को भक्तिपूर्वक नमस्कार करके पुनः अपने नगर में आये. __ तत्पश्चात् न्याय के मंदिर समान राज्य का चिरकाल पालन किया और अंत में आयु पूर्ण कर देवलोक में गये. इस प्रकार जो मनुष्य शुद्ध भाव से दान देते है वे जगह जगह सर्वत्र शाश्वत सुख की परंपरा को प्राप्त करते है. P.P. Ac. Gunratrasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust