________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित साथ सम्यक्त्व से भ्रष्ट होकर मिथ्यात्वी होने का समाचार भी संघ को उपलब्ध हुए. कपर्दी यक्षने महातीर्थ श्री शत्रुजय में अनेक पाप प्रवृत्ति शरू की. इससे महातीर्थ की यात्रा दुर्लभ हो चूकी. गाव गाव के संघ चिन्तित होकर आने लगे. और 'अब करना क्या ?' यह सोचने लगे. इस तरह दिन बितने लगे. कई वर्षों बित गये. महातीर्थ की आशातना टालने का कोई उपाय हाथ न लगा. कपदी यक्ष की पाप प्रवृत्ति को रोकने का विचार युगप्रधान श्री वजूस्वामीजी और अनेक आचार्य तथा मुनिवरोंने किया. आशातना को दूर करने का अनेकानेक पुरुषार्थ किये गये, किन्तु सब में निष्फलता प्राप्त हुई. - कपदी यक्ष की प्रवृत्ति आगे बढ रही थी, उसी समय जावडशा के मातापिता का देहान्त हुआ. जावडशा पे दुःख का पहाड तूटा. यह दुःख के साथ और भी अकस्मात एक दुःख आ पडा मधुमती-जावडशा के गाँव में म्लेच्छों ने आक्रमण किया. घोर हत्या की. जावडशा इस म्लेच्छों के हाथ में फँस गये. म्लेच्छोंने उनकों अपने साथ अपने देश ले गये, किन्तु जावडशाने अपनी बुद्धिबल से म्लेच्छों के अधिपति को खुश कर दिया, जिससे वे अपना धर्म पालन अच्छी रीत से कर सके, जावडशा जब मुक्त हुए, तब वहां आग्रह से म्लेच्छों के P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust