________________ विद्वानगणमें से कोई प्रतिभाशाली लेखक इस ओर ध्यान न दें और इस ग्रंथका विवेचनात्मक अनुवाद तैयार न करें तब तक साहित्यक्षेत्र में यह पुस्तक बहुत उपयोगी होगा यह मेरा विश्वास है. __ संस्कृत मूल ग्रंथ के साथ पुरा संबंध रखा गया है, तथापि इस भावानुवाद में सिर्फ शब्दशः अर्थ सभी जगह दिखाई नहीं पडेगा, फिर भी मूलचरित्र-ग्रंथका परिशीलन करने की इच्छा रखनेवालों को, इसमें से जरूरी उपयोगी जानकारी अवश्यमेव प्राप्त होगी, मूलभूत वस्तु को केवल हिन्दी भाषा में भावानुवाद करने की आकांक्षा से ही मैंने यथामति प्रयत्न किया हैं. - अनुवाद करने को अभिलाषा कब हुई ? विक्रम संवत् 1990 में जो अखिल भारतीय श्री जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक मुनि संमेलन राजनगर-अमदावाद में समारोहपूर्वक अच्छी तरह समाप्त हुआ था उस में श्री जैन समाज के लिये लाभप्रद अनेक शुभ प्रस्ताव किये गये थे, उस में से एक प्रस्तावके फलस्वरूप " श्री जैनधर्मसाहित्यप्रकाशकसमिति' का प्रादुर्भाव हुआ और क्रमशः उस समिति द्वारा सीजनसत्यप्रकाश" नामक मासिक पत्र प्रकाशित होने लगा, उसका ' क्रमांक 100 को विक्रमविशेषांक के रूप में तैयार करने का समितिने निर्णय किया था, उस निर्णय के अनुसार सम्राट विक्रमादित्य का चलाया हुआ विक्रम संवत् के 2000 वर्ष पूर्ण होते थे, उस समय संवत्की दूसरी सहस्त्राब्दी के पूर्णाहुति और तीसरि सहब्दीके आरंभ काल में विक्रम विशेषांक प्रगट करने की जाहेरात P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.