________________ . राजा मन्मथ वहुत प्रसन्न हो कर बोला-मैं आज धन्य हूं जो मैंने आपके दर्शन किये तथा धर्म-लाभ रूपी आशीर्वाद पाया। - गुरु महाराज ने राजा को पूर्णतया जैन पथ दिखाया और . कहा कि दत्त चित्त हो जैन धर्म को धारण करो जिस से तुम्हें मोत सुख को प्राप्ति हो। इस पर राजा ने खिन्न चित्त हो कर कहा "महाराज, मेरे घर में कोई पुत्र नहीं इस लिये धर्मारावन में एकचित्तता नहीं होती। मेरे बहुत से पुत्र हुए भी परन्तु कर्म योग से सब मर गये। अतः मेरो चित्त हर समय दुःख में व्यस्त रहता है। शास्त्र कारों का कथन है. "बालस्स माय मरणं भज्जा मरणं च जुबणा रमे बुढस्प पुत्त मरणं तिन्निवि गुरु आई दुक्खाई" . अर्थात्-चालक को माता के मरने का, जवान मनुष्य को पत्नी और वृद्ध को पुत्र के मरने का बहुत ही दुःख होता है / पुत्र के विना मेरो राज पाट सर्वथा व्यर्थ है"। * - राजा मन्मथ के प्रलाप को सुन कर गुरु महाराज ने कहा "राजेन्द्र ! शोच क्यों करते हो? धर्म के प्रभाव से तेरे पुत्र होंगे। राजा ने गुरु महाराज के बचनों से धयं धारण किया और गुरुत्रों को नमस्कार करके उसी देवता के श्राधार से वह अपने . नगर में पहुंचा। तथा उस देवता ने उसे लौटते समय सर्वरोग हरण करने वाला स्वर्ण का प्याला दिया और कहा कि इसमें डाल कर पिये गये जल से सब रोग दूर हो जायेंगे"-ऐसे कह कर देवता लौट कर अपने स्थान को चला गया।:::: P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust