________________ सब के पूज्य हो इस लिये श्राप मुझ गरीब के घर की शोभा बढ़ावें। तथा अपने चरणों से उसे पवित्र करें। राजो ने भी श्राप को स्मरण किया है अतः श्राप सभा में चलकर भी अवश्य अपना कला कौशल दिखावें। योगी ने मन्त्री को उत्तर दिया--हम योगियों का राजा से क्या प्रयोजन है। दूसरे वह राजा कहलाने के योग्य नहीं। राजा वही कहला सकता है, जो कि न्याय तथा अन्याय को जानता हो। उसही के दर्शन करने योग्य हैं। सचिव! यदि अन्याय करते हुए राजा को मन्त्री नहीं रोकता-तो उस मन्त्री को भी बहुत पाप लगता है। मन्त्री ने योगी की बात सुनकर पूछा, महाराज ! हमारे . राजा ने कौनसा पाप किया है। योगी ने उत्तर दिया-मंत्रीवर्या ! जो योगीजन देश विदेश फिरते हैं, भिक्षा मांग कर निर्वाह करते हैं। राजा ने उनको किस लिये चोरों की तरह बन्दी गृह में डाल रक्खा है। रोजा का इस प्रकार का अन्याय कैसे सहन हो सकता है ? मन्त्री जी तुम अभी राजा के पास जाओ। योगी (कुमार) की बात सुनकर मन्त्री तुरन्त ही राजा के पास जाकर बोला-राजेन्द्र ! वह योगी बहुत दयावान्, विद्वान तथ दानी है। इस लिये उसका तो मान करना ही उचित है तथा इन योगियों को छोड़ देना ही बेहतर है। अतः इन को जल्दी छोड़ दें। योगी की आज्ञा पाते ही राजा ने सब योगियों को छोड़ दिया। छूटे हुए सब योगी राजा को आशीर्वाद देकर बन में चलेगये। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust