________________ पीछे भागा और केरापाश से उस शिर को ऊपर उठाया, तो राजा के विस्मय का पारावार न रहा; क्यों कि उसके हाथ में मस्तक मात्र था। राजा ने खिन्न होकर पुनः नदी की ओर देखा, तो समस्तक ही वह पुरुष उसी प्रकार जाता दीखने लगा। विस्मययुत राजा को विश्वास हो गया कि यह सव मुव कोई दैवीशक्ति है और कुछ नहीं। ___ तब राजा ने पूछा-"आप कौन हैं" ? उत्तर मिला-''मैं देव हूँ"। "तुम कौन हो" ? मन्मथ ने उत्तर दिया कि "मैं राजा हूँ"। तव वह शिर बोला “यदि तुम राजा हो तो तुमने मेरे साथ अन्याय क्यों किया? राजा की सब शरण होते हैं। मेरा शिर तुमने चोर की तरह क्यों पकड़ा? क्यों कि "दुर्बलानामनाथानां बालवृद्धतपस्विनाम् / ....... परैस्तु परिभूतानां सर्वेषां पार्थिवो गतिः" // अर्थात्-दुर्वज, अनाथ, वाल, वृद्ध तपस्वी, तथा दूसरों से सताये हुये को राजा के विना गति नहीं। . तुम पांचवें लोक पाल हो! यदि आप ही मेरा पराभाव करेंगे तो बस होलिया ? अतः श्राप मेरा मस्तक छोड़ दीजिये गा। राजा ने तुरन्त ही उसके मस्तक को छोड़ दिया। वह मस्तक तुरन्त ही हस्ती बन गया; राजा भी कुतुहल वश उस पर चढ़ बैठा। अब वह हाथी आकाश में उड़ा। राजा पृथ्वी पर रहने P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust