________________ * चतुर्थ परिच्छेद - [81 से लक्ष्मी अधिक बढ़ती है, ऐसा मन में विचार कर वह लोभी प्रातःकाल में उठा और परद्वीप के योग्य करियाणा से वाहण को जल्दी भर दिया। सिद्धदत्त के शुद्ध मन और वाणी वाला एक बाल्यकाल का विमल नामक मित्र पारिणामिक बुद्धि है। उसने वहां आकर सिद्धदत्त से कहा-हे. बन्धु ! दान और भोग का प्रवर्तक धन तो दूर रहा / पहिले तेरे घर में एक दिन के लिए भी भोजन नहीं था, इस समय पुण्य से इतना धन हो गया तो फिर क्यों प्राणान्त कष्ट देने वाले पोत व्यापार खुद लोभ से जारहे हो ? निर्धन लोग प्राणान्त कष्ट देने वाले पोत व्यापार में जाते हैं। उनके लिए तो जाना उचित है। क्योंकि वे लोग 'दारिद्रय से मरण को श्रेष्ठ मानते हैं।' अन्यत्र भी कहा है: उत्तिष्ठ क्षणमेक मुबह सखे ! दारिद्रयभारं मम।. श्रान्तस्तावदहं चिराच्च शरणं सेवे त्वदीयं सुखम् // इत्युक्तोधन वर्जितेन सहसा गत्वा श्मसानं शवो। ... दारिद्रयान्मरणं परं सुखमिति ज्ञात्वो स तूष्णीं स्थितः // 1 // किसी निर्धन ने जाते हुए शव 'मुर्दे' से कहा-हे सखे ! एक क्षण के वास्ते उठ खड़े होमो और मेरे दारिद्रय P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust