________________ n 80] * रत्नपाल नृप चरित्र के ainik गया। जैसे 2 लाभ होता रहता है तैसे 2 लोभ अधिक से अधिक बढता रहता है। पुराने समय में दो मासे सोने का चाहने वाला ब्राह्मण करोड़ सुवर्ण से भी तृप्त नहीं हुआ। सिद्धान्त में वैसा ही कहा है:- जहां लाहो तहां लोहो लाहा लोहे पवढढई। दो मासं कणयकज कोडिऐऽवि न निट्ठिअम् / / 1 / / आय आज भी कहा है / तृष्णा खानिरगाधेयं दुष्पूरा केन पूर्यते / / या महद्भिरपि क्षिप्तैः पूरणैरेव खन्यते // 1 // रा केन पूर्यते / / 1. अर्थात्-यह तृष्णा रूपी खान अगाध है तथा दुप्पूर है। किससे भरी जा सकती है ? जो बड़े पूरणों के प्रक्षेपों से भी खुदती रहती है। एक दिन लोभाक्रान्त सिद्धदत्त रात्रि के पिछले प्रहर में जगा हुआ मन में विचारने लगाइस प्रकार के लाभों से मेरी इच्छा के अनुसार वित्त कैसे संचित होगा ? क्योंकि घड़े कभी ओस के पानी से कहीं नहीं भरे जाते। इस कारण से बे रोक टोक धन की प्राप्ति ' के लिए मैं इस समय जहाज में यात्रा करू / क्योंकि अश्व के व्यापार से, जहाज के व्यापार से तथा पत्थर के व्यापार P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust