________________ * तृतीय परिच्छेद * [65 सेठ की स्त्री शुद्ध आचरण शालिनी कमलश्री के साथ मन को रोकने के लिए मित्रता कर ली। उसके घर में आकर स्नेह गोष्ठी से मन बहलाकर निषिद्धाचरण के मार्ग से मन को कुछ रोकती थी। ले . एक दिन वहां निर्मल आशय वाली विमला नामक गणिनी अपने परिवार. साध्वियों के साथ पधारी और . कमलश्री के उपाश्रय में ठहर गई। तदनन्तर उस सुलक्षणा. ने अदृष्ट पूर्व उन साध्वियों को वहां आई हुई देखकर विस्मित हुई भोलेपन से अपनी सखी से पूछा-हे सखी ! स्वामि रहिता ये सब जगह घूमती रहती हैं, इनके पति, सन्तान आदि कहां है और इनका कुटुम्ब भी कहां है तथा ये सुहाग के चिन्ह और आभूषण आदि से तथा भोगसामग्री रहित, शृंगार रहित, सिर में मुण्डित क्यों है ? उसके इस प्रकार पूछने पर कमलश्री ने मुग्ध प्रकृति से कहाहे सखी ! ये सत्य और संयम से जीवन को बिताने वाली महासतियाँ हैं। मांगल्य श्रृंगार से रहित समस्त पापों से / मुक्त, कषाय रहित, निर्मल मन वाली, तत्वज्ञान को जानने वाली, शुद्ध ब्रह्मचर्य में लग्न और लौकिक मार्ग से पृथक हैं। तथा वीतराग भगवान् के उपदेश में निरत गुप्त आशय वाली हैं / ये संसार कूप में गिरने . वाली. अपनी जाति का P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust