________________ के तृतीय परिच्छेद * [63 . अर्थात्-प्रतिदिन दश 2 भव्यों को याः इससे भी अधिक को वोध देने की शक्ति वाले नन्दिषेण मुनि थे, तो भी उनके संयम में विपत्ति थी। प्रतिदिन दस. मनुष्यों को प्रतिबोध करने वाले तथा वीरनाथ के शिष्यं श्रेणिक पुत्र नन्दिषेण मुनि वेश्या में आसक्त थे / / कोई वीर बाहुबल से युद्ध में लाखों शत्रुओं को जीत ले और एक मन को जीते तो उसका परम जय है.। अनेक वीर उन्मत्त हाथियों को सुख से वश में कर लेते हैं, परन्तु निरंकुश मन किसी से भी दमन नहीं किया जा सकता / मन को ही दमन करना चाहिए। मन ही दुर्दम है, मन को वश में करने वाला इस लोक में और परलोक में सुखी होता है। जितात्मता फिर चिन्हों से जानी जाती है, न कि कहने से। जैसे सूर्योदय कान्ति से ज्ञात होता है, न कि सैंकड़ों शपथों से / शम, संवेद, निर्वेद, आस्तिक्य, मैत्री, दया, दम, समत्व, अममता आदि से जितात्मता जानी जाती है। जीत लिया है मन जिन्होंने ऐसे महात्माओं के मन में अनादि जन्म जन्मान्तरों से अभ्यस्त सांसारिक सुख की इच्छा प्रायः उत्पन्न नहीं होती। शुभ आशय वाले महात्मा लोग सब प्रकार के सर्वज्ञ और अल्पज्ञों के सद्धर्मानुष्ठान में निरन्तर यत्न करते रहते हैं। उस सदनुष्ठान के P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. P.P.AC. Gunratnasuri M.. . Jun Gun Aaradhak Trust Jun Gun Aaradhak Trust