________________ 46 ] * रत्नपाल नृप चरित्र * को उठ खड़े हुए। उस समय महाबली वल्लभ आदि खेचर वीरों के साथ उस दिव्य रस से उत्पन्न अभित तेजसाली देवताओं से भी अजय्य रत्नपाल महीपाल ने चिरकाल तक शस्त्राशस्त्रि युद्ध करके उस कन्या को ग्रहण करने में उद्यत सब शत्रु खेचरों को सहज ही जीत लिया। उस समय मनुष्य और देवताओं में यही एक वाणी गूंज रही थी कि भूचर ने समस्त खेचर विद्याधरों को जीत लिया। यह बड़ा आश्चर्य है। इस प्रकार की वाणी से अत्यन्त अपमानित होने से दुखी हुए विद्याधर लोग शस्त्रधारियों से उच्छ्रसित हुए युद्ध में गिरे हुए की तरह थे। नृपराज रत्नपाल ने भी शत्रुओं की मूर्तिमान् जयलक्ष्मी के समान सौभाग्यमंजरी का बड़े उत्सव के साथ पाणिग्रहण किया। तदनन्तर हेमांगद ने पुरानी प्रीति से बहुत सी प्रज्ञप्ति गौर्यादि विद्यायें दी और उसने उन्हें साध लिया। उस सिद्ध - विद्या के बल वाले राजा रत्नपाल ने वैताड्य पर्वत की दोनों श्रेणियों के सब नभश्वरों को जीतकर अपनी आज्ञा को प्रवर्त किया। अनेक प्रकार के उपहार की श्रेणि से पूर्ण है श्री जिसकी ऐसा सरलाशय वह नृप अपनी उन तीन स्त्रियों के साथ हेमांगद आदि विद्याधरों से निषेध करने पर भी विमान में चढ़कर सुख से अपने नगर में पहुँचा / ..... टा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. - Jun Gun Aaradhak Trust