________________ Ater ___38] __ * रनपाल नृप चरित्र के गया और खन्न, कुन्त और शर' के समूह तथा मुग्दरों से क्रूर आक्रमण करने वाले शूरवीर आपस में घमासान युद्ध करने लगे। रत्नपाल नृप की बड़ी बलवती सेना ने अधम जय मन्त्री की सेना को भंग कर दिया। अपनी सेना को भागती हुई देखकर कुपित हुए मन्त्री ने राजा की फौज पर फैलने वाली अवस्वापिनी निद्रा छोड़ी। उस विद्या से राजा की चैतन्य रहित हुई समस्त संना हाथ से गिरते हुए अपने शस्त्रों को भी नहीं जानती थी, इस प्रकार ज्येष्ठ मास की तरह सघ कार्यों में आलस्ययुक्त अपनी सेना को देखकर महाकष्ट में पड़ा हुया राजा हृदय में दुःख पाने लगा। उस समय वैदेशिक श्रान्तश्रावक जो पहले देवता हुआ था उसने अवधि ज्ञान का प्रयोग करके राजा को दुःख में पड़ा . देखा, तत्र प्रत्युपकार के लिए वहां आकर राजा की सेना पर पड़ी हुई अवस्वापिनी निद्रा को हरण करके समस्त बल को स्वस्थ किया। उस देव की कृपा से बल प्राप्त सेना फिर तेजी से युद्ध करने में तत्पर हुई। जब रत्नपाल की सेना स्वस्थ हुई, तप क्षीण विद्यावल वाला जय मन्त्री अपनी विजय से निराश . हो गया। .. जय मन्त्री जिसकी आत्मशक्ति दुष्कर्म की उष्मा से 1. बाण : .. S AChan... / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust