________________ * रत्नपाल नृप चरित्र इस प्रकार रूप सौभाग्य और 'लावण्य से विभूषित : शृंगारसुन्दरी आदि सहस्र स्त्रियें क्रमसे उसके हुई। - उसके बाद नीतिज्ञ होते हुए भी उसने जैसे कोई दूध , को विलाव के अधीन करे, उसी तरह जय नामक महामन्त्री " को राज्यभार सौंप दिया और आप नित्य अन्तःपुर में निवास करता हुआ सुख समुद्र में खेलते हुए पांच प्रकार के कामसुख। को भोगने लगा। .. इधर मन्त्री ने विचार किया कि हाथ में आये हुए इस राज्य को अपना बनाकर और इस राजा को मारकर मैं ही राजा बन जाऊ। यह विचार कर उस दिन से दान. सम्मान आदि से सारी सेना को अपने वश में करली, फिर किसी सिद्ध पुरुष से प्राप्त हुई सिद्ध विद्या से राजा को अव- 1 स्वापिनी निद्रा दे दी। उससे अचेतन हुए राजा को पलंग सहित ही अपने विश्वासी पुरुषों द्वारा उठवाकर दूर जंगल में / छोड दिया। रत्नपाल के पूर्वभव के पुण्य के प्रताप से उस दुराचारी मन्त्री की इच्छा उसको जान से मारने की नहीं हुई। .. .. . इधर असाधारण राज्यलक्ष्मी को पाकर उस मदोन्मत्त ... = पापी जय मन्त्री ने एक महासती शृंगारसुन्दरी को छोडकर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust