________________ द्वितीय पच्छेिद [23 के यज्ञ कहे जाते हैं। जो अविश्वास्य हो राजा उसका धन हरण करके उसे अपने देश से निकाल दे। जो विश्वास के योग्य हो उसको बड़ी उन्नति पर चढ़ाना चाहिए / राज्य के लोभ से पुत्र, मित्र, पिता और भाई भी आपस में लड़कर मर जाते हैं, जिसके साथ जमीन और खण्डनी का विरोध हुआ हो उसका विश्वास न करना चाहिए। मित्र तीन प्रकार के होते हैं—(१) धर्म मित्र, (2) पर्व मित्र और . (3) नित्य मित्र / इन तीनों में से 'धर्म मित्र' के विश्वास में रहने से 'धर्म मित्र' कभी विश्वासघात नहीं करता और 'पर्व मित्र' एवं 'नित्य मित्र' इन दोनों का विश्वास करने से दगा होता है / हे वत्स ! इस तथ्य को जानता हुआ तू 'धर्म मित्र' को छोड़कर किसी का भी विश्वास मत करना / ऐसा उपदेश अपने पुत्र को देकर वैराग्ययुक्त उस राजा ने चैत्य में अष्टाहि का महोत्सव करके दीनों को दान देकर जिनेश्वर भगवान् की / कही हुई सर्व विरति रूप चारित्य दीक्षा अंगीकार करली। स्वाध्याय के पठन का उद्योग करने वाले उसने कठिन तप करके शुभ ध्यान रहकर अपनी आयुष्य को पूर्ण कर देवलोक के सुख भोगने के लिए स्वर्ग को पाया। तदनन्तर प्रजा का पालन करते हुए महाप्रतापी रत्नपाल महीपाल ने स्वयंवर में प्राप्त हुई अनेक राजकुमारियों के साथ विवाह किया। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust