________________ 14 ] * रत्नपाल नृप चरित्र * अन्य में आसक्त स्त्री के मन की प्रसन्नता इन्द्र भी नहीं कर सकता तो दूसरों से कैसे सम्भव है ? * .. तदनन्तर प्रतिहार भुजबल, धैर्य आदि गुणों से युक्त गौड़, मालव आदि आठ देशों के राजाओं की विभूति का वर्णन करने लगा। उस समय समस्त गुण भूषित वर को चाहने वाली कन्या ने 'देश सामान्य दोष' से जैसे गौड़ देश के लोग कार्य में चतुर और बहुभोजी होते हैं, मालवे के मनुष्य दुष्ट, खस देश के लोग दुःस्वार्थ में तत्पर, महाराष्ट्र के लोग धूर्त और जड़ बुद्धि होते हैं, लाट देश के निवासी केवल वाक्प्रपंच में चतुर, कर्नाटक के वास्तव्य क्रूर और गुजराती अन्तहृदय में गूढ़ हैं, कथन से उत्तर दिया। इस वह पतिम्वरा जिस 2 राजा को उलांघती थी, उसका मुख राहुग्रस्त चन्द्रमा की सदृश श्याम हो जाता था। अन्य स्थल में भी कहा हैसंचारिणी दीप शिखेव रात्री य यं व्यतीयाम पतिवरासा। नरेन्द्रमार्गाट्ट इव प्रपेदे विवर्ण भावं स स भूमिपालः // 1 // तदनन्तर प्रतिहार अमृताञ्जन को देखते ही बोलायह कीर्तिकेय के समान बलवान् रत्नपाल कुमार है, विनयपाल P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust