________________ 4. ] * रत्नपाल नृप चरित्र * को साधन के लिए हरि वासुदेव और चक्रवर्ती जो महा प्रभावशाली हैं, वे भी वांछित सिद्धि को देने वाले मेरी ही सदा सेवा करते हैं। तप से अस्थिर कार्य स्थिर, वक्र भी सीधा, दुर्लभ सुलभ और कठिन भी सरल हो जाते हैं। जैसे अग्नि अनन्त काष्ठ-राशि को क्षण भर में भस्म कर देती है उसी तरह मैं अनेक भवों से संचित दुष्कर्मों को क्षण भर में नष्ट कर देता हूं। अन्य शास्त्रकारों ने भी कहा है:-बाह्य और अभ्यन्तर तपो वहि के देदीप्यमान होने पर संयमा दुर्जर कर्मों को भी क्षण भर में काट देता है। निकाचित कर्मों से अत्मा दो तरह से छूटता है, स्वयं अनुभव 'भोग' करके या मर तप द्वारा भस्म करक। सीमंधर स्वामि ने कहा है:-हे भव्यो ! पूर्व भव में संचित किये हुए जिनका प्रतिकार दुःशक है, ऐसे कर्मों / को भोगकर ही मोक्ष होता है, बिना भोगे नहीं / अथवा तप से उनको नाश करके मोक्ष होता है। ये दो ही "उपाय हैं। फिर सुनोः-निषिद्ध आचरणों से उत्पन्न हुए पापों से मलिन अात्मा गुरु से उपदिष्ट तप से (मेरे से) ही शीव. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust