________________ न -: गुरु-स्तुति :- अम.. चंचल मन को कर निज अधीन बनते इन्द्रिय जित सभीचीनं / है अन्तःकरण पवित्र शांत, गंभीर सिन्धु सम जो नितान्त // सद्गुरु गण से भूषित महान् , हो तपोरूप तुम मूर्तिमान / तुम शुचिता समता के सुधाम, हे ! हीर मुनि तुमको प्रणाम / / श्री तपागच्छ गगनांगण में, विस्तृत वसुधा के प्रांगण में / तव कीर्ति पताका का प्रसार, भूतल नभतल के हुआ पार // - तुम वसुधा की अनुपम विभूति, तुमसे होती सन्मति प्रसूति / 5 तुम चिदानन्द रत हो अकाम, हे हीर मुनि तुमको प्रणाम | तुम यशः शुक्ल तुम तपः शुक्ल, शुचि वश्यों में बनते सुशक्ल / हे मुने ! तुम्हारा मधुर जाप, भक्तों के करता ध्वंस पाप // तुम अशरण शरण अनाथ नाथ, तुमसे वसुन्धरा है सनाथ / तुम करुणा के सागर प्रकाम, हे हीर मुने! तुमको प्रणाम / / आत्मस्थ भाव में लीन मूर्ति, करती अभाव की अचल पूर्ति / : बहु हितकर रुचिकर सरस सूक्ति, देती भक्तों को भुक्ति मुक्ति // उपदेश सुधा सरसा अमला, कर अमर शान्ति देती अचला / "तुमसे दृढ़ अंगीकृत वियाम, हे हीर मुने ! तुमको प्रणाम // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust