________________ अब क्रम से आपने पूज्यपाद प्रवर्तकजी श्री कान्ति मुनिजी महाराज जो कि कल्याण मुनिजी महाराज के काका गुरु थे, उनके सान्निध्य में रहकर धार्मिक विद्याध्ययन करना आरम्भ किया और कुछ ही काल में आपने पंच प्रतिक्रमण नव स्मरण, प्रारण भाष्य, कर्मग्रन्थ, वृहत् संग्रहणी, क्षेत्र समास, तत्वार्थ सूत्रादि का सम्यक् प्रकार से स.र्थ अध्ययन कर लिया। उसके बाद आप एक अच्छे विद्वान् पण्डित के पास सारस्वत व्याकरण पढने लगे। साथ ही साथ कोष, न्याय, काव्यादि का अभ्यास भी किया करते थे। अब आपकी वक्तृत्व शैली भी अवर्णनीय हो गई। आप जिस वक्त व्याख्यान देते, उस समय सचमुच माधुर्य टपकने लगता। आपका पहिला चातुर्मास मेहदपुर (मालवा) में हुआ, उसके बाद अनेकों चातुर्मास आप स्थान-स्थान पर करते रहे। सुअवसर मिलने पर आपने पूज्य पन्यासजी श्री हर्ष मुनिजी की अध्यक्षता में रह, उत्तराध्ययन, आचारांग, कल्पसूत्र, महानिशीथ सूत्रादि के योगोद्वहन किये। दिनोंदिन तपस्या और विद्याभ्यास से आप ख्याति प्राप्त करने लगे। सम्वत् 1978 में पन्यासजी श्री शान्ति मुनिजी सूरि महाराज़ अति आग्रह होने पर आपने भगवती सूत्र के योगोद्वहन में प्रवेश किया तथा सम्वत् 1979 के फाल्गुन शुक्ला 3 को P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust