________________ तीसरा परिच्छेद 31 मन ज़रा भी चञ्चल नहीं हुआ। इतने में क्रोधसे गर्वमें भरे हुए जो बहादुर सिपाही कुमारको पकड़कर ले जानेके लिये आये थे, वे सबके सब अन्धे हो गये-उन्हें अपना हाथ तक भी पसारे नहीं सूझाने लगा। ऐसी अवस्था हो जानेके कारण वे ओपसमें ही एक दूसरेपर गिर पड़ने लगे और अपनेही आदमियोंको शत्रु समझ कर आपस में ही युद्ध करने लगे। कोई-कोई तो मन्दिरको पाषाण प्रतिमाकोही कुमार समझकर पीटने लगे और कहने लगे,कि तूने चोरीसे राजकुमारी और उसकी सखियोंके साथ क्यों शादी की ? कोई मन्दिरमें लटकते हुए चँवरको ही कुमारका केश समझ कर, पकडकर नोचने और गालियां बकने लगा। कोई मन्दिरके पत्थरके बने हुए हाथीकी रॉडको ही कुमारका हाथ समझ, पकड़कर खींचने और क्रोधसे दांत पीसते हुए जोर आज़माने लगा। इस प्रकार उन अन्धे सिपाहियों की विचित्र हरकतें देख-देखकर कुमार मन-ही-मन हँसने लगे। जब राजाने अपने सिपाहियोंकी यह हालत सुनी, तब तुरत अपने मन्त्रीको बुलाकर कहा,-"वह आदमी कोई मामूली नहीं मालूम पड़ता, इसलिये तुम वहाँ जाकर उसे बड़े आदरके साथ यहाँ ले आओ।" - राजाकी आज्ञा पा, मन्त्री, उसी समय घोड़ेपर सवार हो, वहाँ पहुँचे और अपने सिपाहियोंसे बोले, कि इस वीर पुरुषके साथ तुम लोग युद्ध मत करो। मन्त्रीकी यह आझा पातही सब ... सिपाही शान्त हो गये और उनकी आंखें भी पहलेकी ही भांति P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust