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________________ PPAC Guntasun MS रास्ता न रहा। जश्वों की टापों से पृथ्वी खण्डित हो चली। जिन नदियों में सेना जाने के पूर्व अथाह जल दीख पड़ता था, उनमें सेना के पार हो जाने पर कीचड़ मात्र रह जाता था। सेना के वेग से उच्च भूमि समतल एवं समभूमि विषम हो जाती थी। जब राजा मधु को सेना वटपुर आ पहुँची, तब वहाँ के राजा को यह ज्ञात हुआ। वह राजा मधु से मिलने के लिए आया। उसने भक्तिपूर्वक प्रणाम कर कुशल-प्रश्न पूछे। राजा मधु ने भी यथावत सत्कार किया। इसके उपरांत राजा हेमरथ ने विनयपूर्वक निवेदन किया-'हे स्वामी! आप प्रसनाच होकर अपनी चरण-रज से मेरे गृह को पवित्र करें। हे कृपासिन्धु! एक दिन के लिए मेरी राजधानी आप को आतिथ्य स्वीकार करने के लिए प्रार्थना करती है। मेरी राजविभूति देख कर ही आप देशान्तर के लिए प्रस्थान करें।' राजा हेमरथ के विशेष आवेदन एवं साग्रह को देख कर राजा मधु ने एक दिन का आतिथ्य स्वीकार कर लिया। राजा हेमरथ की प्रसन्नता का छोर न रहा। वह शीघ्र ही नगर / उसने सारे नगर को सजाने की आज्ञा दी। स्थान-स्थान पर ध्वजा-तोरण बँधवाये / मार्ग में विधिवत् पुष्प बिखराये गये तथा मङ्गल वाद्य-ध्वनि के साथ राजा हेमरथ ने राजा मधु का नगर में प्रवेश करवाया। राजा मधु राजमहल में जा पहुँचे / रत्नों का चौक पूर के उन्हें स्वर्ण सिंहासन पर बैठाया गया। उस समय राजा हेमरथ ने अपनी रानी चन्द्रप्रभा से कहा-'हे प्रिये! तू स्वयं जा कर राजा मधु का मङ्गल आरती उतार कर सत्कार।' चन्द्रप्रभा ने राजा से प्रार्थना की-'हे नाथ ! नीति ऐसा कहती है कि अपनी सब से प्रिय वस्तु को अन्य राजाओं को नहीं दिखलाना चाहिये क्योंकि उससे उनका चित्त चलायमान हो जाता है। अतएव आप अन्य किसी रानी को भेज कर यह कार्य करवा लें।' राजा हेमरथ ने कहा'हे देवी! तू नितान्त भोलो है ! उनके यहाँ तेरे सदृश सैकड़ों रूपवती दासियाँ विद्यमान हैं। हे शुभमुखे ! तेरे ऊपर उनकी पाप दृष्टि कदावि न जायेगी। तुझे शङ्का नहीं होनी चाहिये। तु राजा मधु का सम्मान अवश्य / कर।' पति के आग्रह से रानी चन्द्रप्रभा ने सुवर्ण के मनोहर थाल में उत्तमोत्तम बहुमूल्य मोती, अक्षत आदि माङ्गलिक वस्तुएँ रखी एवं सोलह श्रृङ्गार कर के राजा मधु के पास गई। रानी चन्द्रप्रभा ने तन्दुल, मौक्तिक आदि से राजा मधु को आरती उतारी। किन्तु वहाँ एक विचित्र घटना हुई। सर्वगुणसम्पन्न, मनोहर रानी / चन्द्रप्रभा को देख कर राजा मधु कामबाण से विदग्ध हो गया। उसने विचार किया-'यह लक्ष्मो है या Jun Gun A T 88
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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