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________________ 87 P.PAC Guntan MS अनुचरों के साथ बन्धु का-सा व्यवहार रहता था एवं वे सदा शरणागतों की रक्षा किया करते थे। उनका लोहा शत्रु एवं मित्र दोनों ही मानते थे। उनकी कोर्ति का विस्तार चतुर्दिक था। . एक दिन की घटना है। राजा मधु अपने सामन्तों की मण्डली में बैठा था। उसने नगर के बाह्यवर्ती अञ्चल से आते हुए कोलाहल के शब्द सुने। उस समय राजा ने द्वारपाल से जिज्ञासा की- 'यह कोलाहल क्यों मचा है ? मैं ने तो किसी नगर अथवा देश में ऐसे शब्द नहीं सुने। वस्तुस्थिति क्या है ?' द्वारपाल ने निवेदन किया-'हे राजन् एक महादुष्ट शत्रु राजा है। उसकी सेना विशाल है एवं उसका दुर्ग बड़ा सुदृढ़ है। वह आपके सारे देश को विध्वस्त कर रहा है। उसकी धूर्तता यह है कि गुप्त रूप से मनुष्यों तथा पशुओं के मुण्ड पकड़ कर वह ले जाता है। हमारे नगर में भाग लगा देना उसका नियमित कर्म हो गया है। यदि उसे बन्दी बनाने अथवा रोकने के लिए सेना जाती है, तो वह अपने दुर्ग में जा छिपता है एवं अपनी रक्षा कर लेता है। अयोध्या नगर के बाह्यवर्ती अञ्चल में निरन्तर उसके द्वारा लूट लिए जाने से यहां के निवासी सन्त्रस्त हैं एवं कोलाहल कर रहे हैं।' द्वारपालों द्वारा यह निरङ्कुश काण्ड सुन कर राजा मधु बड़ा क्रोधित हुआ। उसने अपनी आँख ऊपर को चढ़ा लों तथा बड़े आवेश में कहा-'कुलीन मन्त्रिगण ! यह घटना मुझे क्यों नहीं बतलायी गयी? अब तक आप लोग क्या करते रहे ?' मन्त्रियों ने निवेदन किया- 'हे राजन्! आप अभी अनुभव-विहीन हैं। उसकी प्रबल सेना एवं सुदृढ़ दुर्ग के कारण हमारी समस्त सेना तथा सहायक राजागरण भी उसे परास्त नहीं कर सकते हैं। इसलिये यह तथ्य आप से प्रकट नहीं किया गया।' उत्तर में राजा मधु ने कहा-'हे मन्त्रीगण ! क्या सूर्योदय हो जाने पर कहीं अन्धकार का सन्धान लगता है ? वैसे ही अवस्था में अल्प होते हुए भी मैं उसे परास्त करने में समर्थ हूँ। यह भारी अनर्थ हुआ कि मुझे प्रारम्भ में ही सूचना न दी गयी / अतएव अब आप लोग यथाशीघ्र सेना तैयार करो। मैं शत्रु पर आक्रमण करूँगा एवं उसका दुर्ग विध्वंस किया जायेगा। उस दुष्ट बैरी का अवश्य विनाश होगा।' राजा का आदेश पाकर मन्त्रियों ने सेना एकत्रित करने के लिए उसी समय युद्ध का डङ्का बजवा दिया। सारी सेना इकट्री // Jun Cun h a Trust दन्तों की टक्कर से वृक्ष टूट-टूट कर गिरने लगे। विभिन्न प्रकार के चक्रों से मार्ग में आने-जाने तक के लिए |
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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