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________________ | बतलाइये कि इस चाण्डाल एवं कुतिया को देख कर हमें मोह क्यों उत्पन्न हुआ?' मुनिराज ने कहा- 'हे || पुत्रों ! शान्त चित्त होकर सुनो। बिना कारण के कार्य की उत्पत्ति होना कदापि सम्भव नहीं है / ये चाण्डाल तथा कुतिया पूर्व-भव में तुम्हारे माता-पिता थे। इसलिये तुम्हें इनसे स्नेह हो गया है। अन्तरात्मा के ज्ञानी 83 होने से पूर्व-सम्बन्ध का अनुभव हो जाता है।' मुनि की बातें सुन कर सेठ-पुत्रों ने पुनः प्रश्न किया- 'हे भगवन् ! हमारा पूर्व-जन्म का वृत्तान्त सुनाइये।' उत्तर में मुनिवर कहने लगे "जिसे तुम अब चाण्डाल के रूप में देख रहे हो, यह पूर्व-भव में शालिग्राम नगर में सोमशर्मा नामक ब्राह्मण था एवं यह कुतिया उसकी पत्नी अग्निला थी। दोनों ही वेद-शास्त्र के ज्ञाता थे। इनका चित्त सदा हिंसात्मक आराधना में लगा रहता था। ये यज्ञ के लिए पशु-वध किया करते थे। जैन-धर्म से इनका बड़ा द्वेष था। तुम दोनों इस जन्म के पूर्व तीसरे भव में अग्निभूति एवं वायुभूति नामक उनके पुत्र थे। एक बार संयोगवश सोमशर्मा एवं अग्निला की जैन धर्म पर श्रद्धा हो गयी थी। किंतु अपनी जाति के अभिमान में जीवमात्र को हेय समझते हुए दोनों पापाचारियों ने कठिनता से प्राप्त हुए जैन धर्म का परित्याग कर दिया। इस पाप के कारण मृत्यु के पश्चात दोनों का नरक में पतन हुआ। उन्हें पञ्च पल्य पर्यन्त छेदन-भेदन, ताड़न-पीड़न, तापन आदि विभिन्न प्रकार दुःख सहन करने पड़े। नरक की आयु समाप्त होने पर जिन-धर्म को निन्दा एवं मिथ्यात्व के उदय से सोमशर्मा तो कौशल देश में चाण्डाल हुआ एवं अग्निला कुतिया हुई। जब तुम दोनों इनके पुत्र थे, उस समय वे तुम से बड़ा स्नेह करते थे—इसलिये इन्हें बड़ा मोह उत्पन्न हुआ है। जिन धर्म का तिरस्कार करना कालकूट विष वृक्ष के समान है। उसमें मिथ्यात्वरूपी जल सिंचन से अशुभ फल उत्पन्न होते हैं। किन्तु तुम दोनों ने चूँकि पूर्व-भव में जिन-धर्म का पालन किया था, अतः मृत्यु के पश्चात् स्वर्गगामी हुए थे। तुम्हारे लिए वहाँ सुख की समस्त सामग्रिर्थी उपलब्ध थीं। जिन धर्म के प्रभाव से अब तुम सेठ-पुत्र हुए हो / हे पुत्रों ! ये सब पाप-पुण्य के फल हैं,ऐसा दृढ़ विश्वास रखो।' मुनिराज के कथन से सेठ-पुत्रों को अपना सम्बन्ध ज्ञात हो गया। उन्होंने धर्म-स्नेह के वशीभूत हो कर चाण्डाल एवं कुतिया को व्रत ग्रहण कराये। जैन धर्म ग्रहण कर लेने पर चाण्डाल ने मुनिराज से कहा-'हे स्वामिन् ! आप की कृपा से मुझे पूर्व-भव का स्मरण हो आया है। कहाँ तो मैं उत्तम जाति का ब्राह्मण था एवं Jun Gun aradak Trust
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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