________________ P.P.Ad Gurransuri MS किसी समय इस अयोध्या नगरी में अरिअय नामक एक राजा राज्य करता था। उसका अरिजय नाम इसलिये सार्थक था कि वह शत्रु विजयी एवं परोपकारी था। उसके यहाँ रथ, गजराज, अश्व आदि की संख्या इतनी अधिक थी कि उनकी गणना नहीं की जा सकती थी : राज्य के कर्मचारी कुलीन एवं राजभक्त थे, उन्हें देख कर शत्रुओं का दल काँप उठता था। राजा उत्तम लक्षणों से सम्पन्न, कुबेर के समान वैभवशाली एवं प्रजापालक था। अरिजय के दान देने की क्षमता देख कर कल्पवृक्ष भी लज्जित हो उठते थे। कामदेव के सदृश सुन्दर देहयष्टिवाले इस राजा ने दीर्घकाल तक इस पृथ्वी पर राज्य किया। उसकी रानी प्रियंवदा अनिन्द्य सुन्दरी एवं गुणवती थी। उसे राजा इतना प्यार करते थे, जितना इन्द्राणी को इन्द्र एवं रोहिणी को चंद्रमा। रानी धर्मात्मा, पतिव्रता एवं सर्वगुणसम्पन्न थी। उक्त नगरी में ही समुद्रगुप्त नाम का एक सेठ रहता था। वह पुण्यात्मा, श्रावकोत्तम, निर्दोष वंश में उत्पन्न, शङ्काकांक्षादि पच्चीस दोषों से वर्जित रत्नत्रय (सम्यग्दर्शन, सम्यज्ञान, सम्यकचारित्र) से मण्डित था। उसकी षट्-कर्म पालन तथा जिनेन्द्र-पूजा में इन्द्र के समान अचल भक्ति थी। वह त्रेपन क्रिया एवं क्षमा, मार्दवआर्जव दश धर्मों का धारक था। देशव्रत पालन करते हुए उत्तम, मध्यम, जघन्य पात्रों को वह नवधा-भक्ति से दान दिया करता था। इसके अतिरिक्त गृहस्थ कर्म में उसकी पवित्रता स्पर्धा को विषय-वस्तु थी। वह देवशास्त्र-गुरु का उपासक एवं दयालु था। उसकी पत्नी धारिणी मी सर्वगुणसम्पन्ना थी। उत्तम कुल में उत्पन्न होने के कारण वह सुन्दरी एवं पतिव्रता थी। सेठ ने अपनी पत्नी के साथ विहार करते हुए दीर्घकाल व्यतीत कर लिया, तब उन्हें पुत्र की कामना हुई। पुण्य के प्रभाव से स्वर्ग के इन्द्र तथा उपेन्द्र (पूर्व-जन्म के अग्निभूति एवं वायुभूति ) के जीवों ने उनके यहाँ जन्म धारण किया। युगल पुत्र उत्पन्न होने की खुशी में समुद्रगुप्त के यहाँ महान उत्सव का आयोजन हुआ। याचकों को मनवांछित दान दिया गया, जिन-मन्दिरों में पूजा का विधान हुभा तथा नगर में राजा से अभयदान दिलवाया। अपनी शक्ति के अनुसार उसने बन्धन में पड़े हुए पशु, पक्षी, मनुष्यादि को मुक्त करवा दिया। इस प्रकार निरन्तर 6 दिवस पर्यन्त उत्सव सम्पन्न हुए। समग्र कुटुम्बी तथा मित्र एवं पुरजन आमन्त्रित कर बुलाये गये एवं पुत्रों का नामकरण किया गया। जिस पुत्र का | पहिले जन्म हुआ था, उसका नाम मणिभद्र तथा दूसरे का नाम गुणभद्र रक्खा गया। वे दोनों ही भ्राता चन्द्रकला Jun Gun Aaradhak Trust