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________________ P.PAC Gunvansuri MS द्रव्य व्यय हुआ, वह सब व्यर्थ गया। हमने तो पूर्व में हो मना किया था कि वन में मत जाना, किन्तु तुम लोगों | ने हमारी एक न सुनी। जब गये ही थे, तो परास्त हो कर अब क्यों लौट आये ? रे मूखौं ! शास्त्रार्थ में न भी जोत पाये, तो शस्त्र (हथियार) से जीतना था। किन्तु तुम से तो यह भी न हो सका, तुम्हें शतशः बार धिक्कार है।' माता-पिता की भर्त्सना सुन कर अग्निभूति एवं वायुभूति बड़े ही लजित हुए एवं उस समय तो माता-पिता के सामने से हट गये। किन्तु उन्हें उनके कथन से मानसिक सन्तोष हुआ, क्योंकि शास्त्रार्थ में पराजय के पश्चात् वे स्वयं भी मुनि पर शारीरिक प्रहार करना चाहते थे, पर माता-पिता की सम्मति के बिना ऐसा न कर सके थे / अब उन्हें माता-पिता की मी अनुमोदना मिल गयी थी। उन्होंने रात्रि में मुनि का वध करने का संकल्प ले लिया। ऐसा विचार कर वे रात्रि को घर में ही ठहरे। जब मध्य रात्रि हुई, तो दोनों ने अपनी कमर कस ली। वे दुष्ट क्रोधित होकर अपने-अपने हाथ में इच्छा पूर्ण करनेवाली कामधेनु सदृश खड्ग लेकर घर से बाहर निकले। उनकी चोटियाँ बंधी हुई थी एवं नेत्र रक्त वर्ण हो रहे थे। उन्होंने उसी दिशा की ओर प्रयाण किया, जहाँ सात्विकी मुनि से वाद-विवाद हुआ था। अब हम यह देखते हैं कि सात्विकी मुनि ने शास्त्रार्थ के पश्चात् क्या किया ? जब ब्राह्मण-पुत्र शास्त्रार्थ में परास्त हो गये, तो मुनि अपने गुरु आचार्यश्री नन्दिवर्द्धन के पास जा पहुंचे। उन्होंने भक्तिपूर्वक उनके चरणों में नत होकर उनसे कहा-'हे गुरुवर्य ! मेरो एक प्रार्थना है, कृपया बाप उस पर ध्यान दें। मैं नै वादविवाद का नियम न होते हुए भी ब्राह्मण-पुत्रों से शास्त्रार्थ किया है। अतएव जाप अनुग्रह कर इसका प्रायश्चित बतलाइये।' उत्तर में मुनीन्द्र श्रीनन्दिवर्द्धन ने अपना मस्तक डुलाते हुए कहा-'हे वत्स! तुमने सर्वथा अनुक्ति कार्य किया है। इस कारण मुनि संघ पर विपदा आयेगी। जिन ब्राह्मण-पुत्रों का दर्प-मंग हो गया है, वे अत्यन्त क्रुद्ध हैं। आज रात्रि में वे हाथ में दुधारे खड़म लेकर वन में पहुँचेंगे व स्थासम्भव सभी मुनियों का वध करेंगे।' गुरु के वचनों को सुनते ही सास्विकी मुनि काँप उठे। मुनियों की मृत्यु होने की सम्भावना से | उन्हें जो क्लेश हुमा, वह वर्णनातीत है। उन्होंने बाचार्य से निवेदन किया है कृपानिधाम मुनिसंघ की। || रक्षा का कोई उपाय हो तो बतलाइये। यदि मेरे अपराध के कारण अन्य निरपसव मुनियों का वध हो / / मुझे शतशः बार धिक्कार है! मृत्यु के उपरान्त भी मेरी व जाने कौन-सी मधम मति होगी? सात्विको मुक Junun A Us
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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