________________ 65 P.P.AC.GurmathasunMS. वाद-विवाद सुनने की अभिलाषा से वह भी यहाँ बाया हुआ है। देखो, वह सामने ही बैठा है।' सब मनुष्यों के सामने ही सात्विकी मुनिराज ने उस गूंगे ब्राह्मण को बुला कर पूछा- 'हे पुत्र प्रवर ! तू ने अपनी अज्ञानतावश व्यर्थ में जो मौन धारण कर लिया है, उसे अब त्याग दे। अपनी मधुर वाणो द्वारा अपने बन्धुवर्गों को बाह्लाद प्रदान कर। सृष्टि की रचना ऐसी ही विचित्र हुआ करती है। जो पुत्री है, उसे माता का पद मिल जाता है एवं पिता को भी पुत्र होना पड़ता है, जब कि स्वामी सेवक बन जाता है। इसी प्रकार क्रम से पुत्रवधू अथवा पुत्री तो माता, धनवान तो निर्धन, दरिद्री तो धनी, कुत्ते तो देव एवं देव तो कुत्ते हो जाते हैं। यह सब कर्म की विचित्रता है। इससे बुद्धिमान लोग न तो शोक करते हैं, न उन्हें ग्लानि होती है। हाँ, संसार को सुस्त्र प्रदान करनेवाला एवं भय का नाश करनेवाला एक धर्म ही है। उसकी शरण में जाने से किसी प्रकार का विषाद सहन नहीं करना पड़ता एवं न ही दुःख भोगना पड़ता है।' सात्विकी मुनि के उपदेश से गूंगे को बड़ा बानन्द हुआ। उसने बारम्बार मुनि को वन्दना की। उसके नेत्रों से अश्रुषों की धारा प्रवाहित होने लगी थी। वह अपने दोनों हाथ जोड़ कर मुनि से निवेदन करने लगा-'हे कामरूपी गजेन्द्र को परास्त करनेवाले सिंह के सदृश निर्भीक साधु शिरोमणि ! आप मेरी प्रार्थना ध्यान से सुनें। संसार समुद्र से पार उतारनेवाली परम उपकारी जिन-दीक्षा मुझे ग्रहण कराइये। अब मुझे संसार, बन्धु-बान्धव, स्त्री-पुत्र, धन-धान्य आदि की आवश्यकता नहीं। मैं ने अनुभव किया है कि इस असार संसार में कोई सार नहीं है. इसे त्यागना हो उत्तम है। अतः आप मुझे जिन-दीक्षा प्रदान करें, जिससे मेरा भव-रोग छुट जाये।' मूक (गूगे) ब्राह्मण -पुत्र की जिन-दीक्षा लेने को तत्परता देख कर सात्विको मुनि ने कहा-'प्रथम तुम अपने माता-पिता एवं कुटुम्बियों से सम्मति ले लो, तत्पश्चात् तुम्हें दीक्षा दी जायेगी।' मुनिराज के वचनों का उलङ्घन न करना ही प्रवर ब्राह्मण ने उचित समझा। तत्काल वह अपने घर गया। उसने कुटुम्बियों से मिल कर राय की। उसे साधु बनते देख कर माता-पिता एवं सब सम्बन्धी रुदन करने लगे। उन्होंने कहापत्स! तू किस कारण से बाज तक मूक रहा था ?' गूगे ने सबसे क्षमा मांगते हुए कहा-'मैं ने पूर्व-भव में मोह-कर्म को उत्पन्न करनेवाली चेष्टायें की थी। उसी के फलस्वरुप मुझे अपनी पुत्र-वधू के गर्भ में जाना पड़ा, उसे में माता मला किस प्रकार कह सकता था? अतः लजावन मैं ने मौन धारख कर लिया। अब मैं