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________________ Ad Guianasuws - पठन-पाठन में तल्लीन रहते हैं / इसलिये मला ऐसा कौन है, जो शास्त्रार्थ में उन दिगम्बर साधुओं से पार पा जाये ?' किन्तु उन अभिमानी पुत्रों को माता-पिता के कथन पर विश्वास नहीं हुआ। वे गर्व से कह उठे'हे तात ! विद्या-बुद्धि में हमें परास्त करनेवाला कोई भी इस पृथ्वी पर अब तक उत्पन्न ही नहीं हुआ। आप || ऐसे दीन वचन क्यों कहते हैं ? हम इसी समय उपवन में जाते हैं एवं उस मिथ्यामति को परास्त कर के ही लौटेंगे।' वे दोनों द्विज-पुत्र अपने माता-पिता के बारम्बार निषेध करने पर भी उपवन की ओर चल पड़े। मुनिराज श्रीनन्दिवर्द्धन उपवन में शिष्य मण्डली के साथ विराजमान थे। उन्हें शास्त्रार्थ में परास्त करने की अभिलाषा से अग्रिभूत एवं वायुभूत गमन कर रहे थे। वे परस्पर अभिमान के साथ वार्तालाप करते जा रहे थे कि हम मुनि से ऐसे कठिन प्रश्न करेंगे कि वह निरुत्तर रह जायेगा। पथ में एक छोटी-सी पहाड़ी की तलहटी में सात्विको नामक एक मुनि विराजमान थे। द्विज-पुत्रों को बड़बड़ाते हुए देख कर उन्होंने पूछा-'तुम लोग इस प्रकार अभिमान में चूर हुए कहाँ जा रहे हो?' ब्राह्मण-पुत्रों ने जोश के साथ कहा'हम आचार्य नन्दिवर्द्धन को शास्त्रार्थ में परास्त करने के लिए जा रहे हैं।' सात्विकी मुनि ने विचार किया कि आचार्य श्री नन्दिवर्द्धन तो दया के सागर हैं, उनकी तपस्यां निर्मल है, हम मुनिगण उनकी सेवा करते हैं। उस पवित्र सरोवर को दूषित करने के लिए ये अभिमानी ब्राह्मण जा रहे हैं, यह उचित नहीं। इन्हें रोक देना चाहिये। ऐसा विचार कर उन्होंने ब्राह्मणों से कहा- 'हे द्विज-पुत्रों ! यदि तुम्हें वाद-विवाद करना है, तो मेरे समीप आओ। मैं तुम्हारी अभिलाषा पूर्ण कर दूंगा।' मुनि की बातें सुन कर ब्राह्मण क्रोधित हो गये। वे मदोन्मत्त तो थे हो, मुनि के समीप जाकर कहने लगे-'२ निर्लज ! वेद-शास्त्रों से विमुख ! तेरे मुख से ऐसी गर्वोक्ति शोभा नहीं देती है। यदि तुझ में बुद्धि, विद्या एवं ज्ञान है, तो हम से शास्त्रार्थ करने के लिए प्रस्तुत हो जा।' क्रोधोन्मत्त ब्राह्मणों ने यह भी कहा-२ मूर्ख ! यह तू क्या-क्या बक गक्ष / ऐसो कल्पना भी नहीं की जा सकती कि तू वाद-विवाद में हमें परास्त कर सकेगा। साथ ही हम आगाह कर देते हैं कि यह भी पहिले ही निश्चय हो जाना चाहिये कि परास्त होनेवाले को क्या दण्ड दिया जायेगा.? इसलिये विद्वत्-मण्डली के सन्मुख शास्त्रार्थ होना चाहिये। बिना साक्षी के वाद-विवाद उचित नहीं।' उत्तर में सात्विको मुनि ने कहा'यह तुम्हारी इच्छा पर निर्भर है। तुम जो शर्त चाहोगे, मुझे स्वीकार है।' मुनि का उत्तर सुन कर द्विजों ने Jun Gun Aara Trust
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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