________________ P.P.AC.GurmathasunMS. . . उनको आते देख कर रुक्मिणी खड़ी हो गई। उन्हें देखते हो उसके शोक का सागर उमड़ पड़ा। वह संज्ञाहीन हो कर गिर पड़ी। अपने हितैषी को देख कर दुःख का द्विगुणित हो जाना स्वाभाविक है। श्रीकृष्ण शीतलोपचार कर उसको चैतन्य करने का प्रयत्न करने लगे। सचेत हो कर वह विलाप करने लगी, जिससे द्रवीभत हो कर श्रीकृष्ण ने भी उसका साथ दिया। दोनों पति-पत्नी विलाप करते रहे। क्रन्दन करतो / हई रुक्मिणी ने कहा-'हे प्राणनाथ! भाप सदृश शक्तिशाली पति के होते हुए भी मेरे पुत्र को यह दशा। वह | कहाँ चला गया? मैं इसे अपना दुर्भाग्य समझती हूँ। आज मुझे सन्तानहीन होना पड़ रहा है।' इतना कह कर रुक्मिणी पुनः भूमि पर गिर पड़ो। उसका हृदय व्याकुल हो रहा था, वह छाती पीट-पीट कर अश्रुपात करने लगी-'हा दैव ! मैं क्या करूँ ? अपने व्यथित हृदय को कैसे शान्त करूँ?' इस प्रकार विलाप करती हुई अपनी प्राणवल्लभा रुक्मिणी को देख कर श्रीकृष्ण ने उससे कहा-'हे देवी! यह काण्ड मेरे ही दुर्भाग्य से हुआ है। मुझे मन्द बुद्धि समझ कर विधाता ने ही मुझ से प्रवञ्चना की है।' राजा एवं रानी को इस प्रकार विलाप करते हुए देख कर वृद्धगण मी विलाप करते हुए उनके समीप आये। वे राजा एवं रानी को विनयपूर्वक नमस्कार कर बोले-'हे महाराज! आप को तो ज्ञात ही है कि इस संसार में जन्म लेनेवाले व्यक्ति का विनाश अवश्य ही होता है / षट् खण्ड पृथ्वी को अपने अधिकार में करनेवाले जितने भूमिगोचरी चक्रवर्ती, विद्याधर एवं तीर्थङ्कर हो गये हैं, उन्हें भी आयु के अन्त में काल के कराल गाल में समाना पड़ा है। ऐसे ही महापराक्रमी, असोम शक्ति के धारक अनेक बलदेव, कामदेव, नारायण, प्रतिनारायण पृथ्वी पर हो चुके हैं। सहस्रों गजराज, रथ, सुभट, अश्व आदि उनकी सेवा में नियुक्त रहते थे, किन्तु उन्हें भी यमराज ने अपनी कठोर दाढ़ के तले दबोच लिया (वे परलोकगामो हुए)। इसलिये अरहन्त ममवान का कथन है कि जन्मधारी की मृत्यु अनिवार्य होती है। प्रत्येक जीव को अपने कर्मानुसार दुःख भोगना पड़ता है। हे महाराज ! यमराज सब के साथ समान व्यवहार करता है। आप शोक एवं दुःख का परित्याग कीजिये, क्योंकि शोक ही संसार-बन्धनका कारण है। शोक से दुःख की निवृत्ति नहीं होती, वरन् अभिवृद्धि होती है। जो लोग बुद्धिमान होते हैं, वे किसी वस्तु का वियोग होने पर अथवा किसी स्वजन-परिजन को मृत्यु हो जाने पर शोक नहीं करते। कारण यही है कि शोक, क्षुधा एवं निद्रा-इन तीनों की अधिक चिन्ता करने पर उनकी