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________________ P.P.Ad Gurransuri MS 044 निवासी भी विलाप करने लगे। यदुवंशियों का तो पूछना ही क्या ? उनकी अजस्र अश्रुधारा के बिन्दु मुक्कामाल सदृश प्रतीत हो रहे थे। इस सम्भव घटना एवं दुःखदायी कोलाहल से श्रीकृष्ण की निद्रा भी भङ्ग हो गयी। उन्होंने सेवकों को | 45 भाज्ञा दी- 'तत्काल ज्ञात करो कि रात्रि के तृतीय प्रहर में रनिवास में कैसा कोलाहल एवं हाहाकार मचा है? मुझे शीघ्र सूचना दो।' राजा की आज्ञानुसार एक दण्डधारी सेवक तत्काल रनिवास में गया / वह आद्योपान्त घटनाचक्र ज्ञात कर राजा के समीप लौट आया एवं करबद्ध निवेदन किया- 'हे नाथ ! मेरा हृदय टूक-टूक हुआ जा रहा है। कारण यह है कि किसी दुष्ट ने रानी रुक्मिणी के शिशु का अपहरण कर लिया है।' ऐसा कठोर सम्वाद सुनते ही श्रीकृष्ण मूञ्छित हो गये। जिस प्रकार वज्रपात से विशालकाय वट क्ष धराशायी हो जाता है उसी प्रकार रोसी दर्घटना का समाचार पाकर उनके हृदय में भीषण आघात लगा एवं वह पछाड खा कर भमि पर गिर पडे। सेवकों ने शीतलोपचार करना प्रारम्भ किया। कुछ कालोपरान्त उनकी मूच्र्छा दूर हुई। वे करुण विलाप करने लगे। उन्हें शोकाकुल देख कर सुभट-सेवक भी चिन्तातुर हो करुण क्रन्दन करने लगे। श्रीकृष्ण की अवस्था कारुणिक हो गयी। वे शोक में अभिभूत होकर कहने लगे'हे पुत्र! तू मुझे त्याग कर कहाँ चला गया? तेरे बिना मेरे जीवन का अब मल्य ही क्या है ? धन-धान्य, दास-दासी, अश्व-गजराज आदि समस्त वैभव-सम्पदा एवं यह साम्राज्य अब तेरे अभाव में मुझे सूना-सूना लगता है / मैं तेरे बिना दीन एवं दुःखी हो गया हूँ। तू इस पुण्यहीन पिता को छोड़ कर कहाँ चला गया। हा! अब भला मेरा कौन मित्र एवं कौन पुत्र ? दुःख सागर में डबते हुए अपने पिता की तू रक्षा कर। हे पुत्र! तू यदुवंश का सूर्य ( दिवाकर) था। तेरी मनोहर देहयष्टि एवं मधुर स्वर मेरे लिए अत्यन्त मनोहारी थे। हे वत्स ! तू बड़ा ही भाग्यशाली था / तू सब का प्रिय था। तेरे वियोग में समस्त द्वारिका निर्जन हो गयी है।' श्रीकृष्ण का प्रलाप उग्रतर होता गया। उनके संग कुटुम्बीजन भी रुदन कर रहे थे। ऐसे ही मर्मभेदो चीत्कार | करते हुए श्रीकृष्ण रुक्मिणी के महल की ओर अग्रसर हुए। मार्ग में उन्होंने सृष्टिकर्ता विधाता को उलाहना दिया- 'हे विधाता! तू क्यों ऐसी सृष्टि की रचना करता है, जिसे हरण करने में तुझे रश्चमात्र भी कष्ट का अनुभव नहीं होता। ऐसे ही अनेक प्रकार से प्रलाप करते हुए वे रनिवास में प्रविष्ट हुए। Jun Gun Aaradhak Trust 48
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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