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________________ SUALLLLLI - P.P.AC.Gurranasuri MS. | है / जो ताम्बल रुक्मिणी के मुख का हो एवं मेरे प्राणप्रिय के अङ्गवस्त्र में बँधा हो, तो वह मुझे प्रिय क्यों न लगेगा ? इसमें उपहास की कोई वस्तु नहीं।' प्रत्युत्तर में श्रीकृष्ण ने कहा-'तथास्तु ! जो हुआ, सो हुआ। अब नहीं हँसंगा।' इतना कह कर श्रीकृष्ण मौन हो गये। कुछ काल उपरान्त सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से प्रार्थना की-'मैं रुक्मिणी से मिलना चाहती हूँ। कृपा कर योग्य प्रबन्ध करवा दें।' श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया-'हे देवी! तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी, ऐसा निश्चित समझो। जब तुमे रुक्मिणी इतनी प्रिय है, तो उससे समागम कठिन नहीं है।' इतना कह कर वे कुछ काल तक वहीं बैठे रहे। फिर धीरे से महल के बाहर निकले एवं प्रेमोन्मत्त होकर झूमते हुए रुक्मिणी के महल में चले गये ! . रुक्मिणी ने जब देखा कि स्वामी आ गये हैं, तब वह उठी। उसने नम्रतापूर्वक उनका चरण-स्पर्श किया। सत्य है, कुलीन नारियाँ सदैव अपनी मर्यादा का पालन करती हैं। श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी से कहा'हे प्रिये ! मेरे कथनानुसार वस्त्राभूषणों से सज्जित हो कर प्रस्तुत हो जाओ। श्वेत वस्त्र एवं लाल वर्ण की कञ्चुकी (काँचली) पहिन लो। अपना सर्वाङ्ग देवाङ्गना की भाँति बना कर तुम सत्यभामा के उपवन में चल कर बैठ जाओ।' रुक्मिणी ने कहा-'आप की आज्ञा शिरोधार्य है। उसने तत्काल ही सोलह-श्रृङ्गार कर लिया एवं श्रीकृष्ण उसको सत्यभामा के उपवन में ले गये / वह उद्यान नाना प्रकार के वृक्षों से सुशोभित था। स्थान-स्थान पर पुष्पों की प्रदर्शिनी लग रही थी। उनकी सुगन्धि पर मुण्ड के मुण्ड भौंरे कलरव कर रहे थे। भौरों की पंक्ति ऐसी प्रतीत होती थो, मानो रुक्मिणी के स्वागत के लिए तोरण बाँधा गया हो। पवन के झकोरों से वृक्षों के तृण ऐसे दोलायमान हो रहे थे, मानो प्रसन्नता में ताण्डव नृत्य कर रहे हों। पक्षियों का कलरव ऐसा प्रतीत होता था कि मानो बन्दीजन स्तोत्र पाठ कर रहे हों। पिक की वाणी सुन कर उमङ्ग में मोर नृत्य कर रहे थे। रुक्मिणी ने उद्यान में प्रवेश किया। वह नन्दन वन में इन्द्राणी सदृश सुशोभित हुई।। उद्यान में एक मनोहर सरोवर था। उसकी समस्त सीढ़ियाँ सुवर्ण की थीं। उसमें अथाह जल भरा था, तटा पर राजहंस बैठे थे। मध्य में पद्म प्रस्फुटित हो रहे थे एवं चक्रवाक युगल बैठा हुआ था। सरोवर के तट पर | रत्नजड़ित माश्रय-स्थल बने थे, जिनमें विभिन्न जलचर जीवों का निवास था। तट पर. ही अशोक वृक्ष था, जिसके तले स्फटिक शिला थी। श्रीकृष्ण ने उसी शिला पर बन-देवी की भाँति रुक्मिणी को आसीन कर IP Jun Gun Aaradhak Trust /
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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