________________ 32 P.P.Ad Gunarasuri MS लगी, जिससे उस पर भौरे मँडराने लगे। सत्यभामा ने बड़ी सावधानी से गठि खोली। उसने समझा रुक्मिणी के लिए कोई अपूर्व भेंट बँधी होगी, जिसे श्रीकृष्ण ने दिखलाया तक नहीं। संसार की गति विचित्र है। मुझ से विश्वासघात किया जाए एवं सौत को ऐसी सुगन्धित वस्तु भेंट में दी जाए।' उसने श्रीकृष्ण को निद्रित समझ कर उच्छिष्ट ताम्बूल को निकाल कर उसे चन्दन की चौकी पर घिस लिया एवं अलभ्य वस्तु समझ कर उसे लेप कर लिया कि अब अवश्य ही श्रीकृष्ण उसके वश में हो जायेंगे। ___जब चूर्ण-संलेपन से सत्यभामा प्रसन्न हो रही थी, तो श्रीकृष्ण ने धोरे से अपने नेत्र खोल कर खिलखिलाते हुए हँसना प्रारम्भ किया। उन्होंने कहा- 'हे मूर्ख ! यह लोक-निन्दित कार्य तू ने कैसे किया ? देखने में तो तू बड़ो पवित्र प्रतीत होती थी। किन्तु रुक्मिणी के उच्छिष्ट (जूठा) ताम्बूल की अङ्ग में लेप कर तू ने बड़ा अनर्थ किया है। रुक्मिणी ने कर्परादि से सुगन्धित पान का बीड़ा चबाया था। विनोद करने के लिए उसे मैं ने अङ्गवस्त्र में बाँध लिया था। सत्पुरुष तो ऐसी वस्तु का स्पर्श भी नहीं करते। तब तू ने अपने अङ्ग पर कैसे लेप कर लिया ?' इतना कह कर श्रीकृष्ण ताली पीट-पीट हँसने लगे। उन्होंने पुनः कहना आरम्भ किया-'हे हृदयेश्वरी! तुझे मैं अत्यधिक प्रेम करता हूँ। तू विद्याधरों के प्रमुख की पुत्री है। तू द्वारिकाधीश की पटरानी है। तू ने ऐसा लोक-निन्द्य कार्य कैसे किया ? परन्तु नीति कहती है कि नारियाँ नदी की तरह निम्न गति की ओर हो जाती हैं। इस नीति का जिसने उल्लेख किया है, वह वस्तुतः उचित ही कहा है।' श्रीकृष्ण मित्र-भिन्न रूप से ताने कस-कस कर सत्यभामा को चिढ़ाने लगे। सत्यभामा लज्जित हो गयी। उसने अपने मनोभावों को छुपा कर प्रकट रूप में चतुरता के साथ कहा-'हे स्वामिन् ! आप व्यर्थ में पञ्चम स्वर में अट्टहास कर रहे हैं। जिस रुक्मिणी को आप शिशुपाल का वध कर हर लाये हैं, वह मेरी छोटी भगिनी समान है। वह मेरे सामने छोटी से बड़ी हुई है। इसलिये जान-बूझ कर मैं ने उसके उच्छिष्ट ताम्बूल का लेप किया। क्योंकि ताम्बल तो मेरी भगिनी के मुख का है, उसके स्पर्श से मुझे सुख प्राप्त होगा। जिसका मल-मूत्र मैं ने धोया, जिसे बड़ा किया, उसके अङ्ग को भोगी हुई वस्तु से मुझे कदापि घृणा नहीं हो सकती। आप व्यर्थ में मेरा उपहास कर रहे हैं। श्रीकृष्ण ने कहा-'तथास्तु ! यदि तुम्हें रुक्मिणी का उच्छिष्ट ही प्रिय लगता है, तो मैं सदैव लाया करूँगा, उसका लेप कर अपना मनोरथ पूर्ण कर लेना। सत्यभामा कहने लगी- 'मुझे यह प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार / / Jun Gun Aaradhak Trust