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________________ P.P.Ad Gurransuri MS शिशुपाल पर टूट पड़े। क्रोधित होकर शिशपाल भी श्राकष्ण से जा भिड़ा। दोनों योद्धाओं में असाधारण युद्ध प्रारम्भ हुआ। इधर बलदेव ने भी शेष सेना पर बाणों का प्रबल वर्षा प्रारम्भ की। पर्वत जैसे मदोन्मत्त गजराज एवं द्रुतगामी अश्व धराशायी होने लगे। रथ पर मारूद सहस्रों शरवीर काल के गाल में समा गये। बलदेव ने || 26 शत्रुओं के दांत खट्टे कर दिये। इस प्रकार एक तरफ श्रीकृष्ण ने शिशुपाल से एवं दूसरी ओर बलदेव ने शेष सेना से भीषण युद्ध किया। दोनों महाबली सुमटों का वह युद्ध दीर्घकाल तक चलता रहा। किसो में इतनी शक्ति नहीं थी कि वह बलदेव के प्रबल प्रहारों का सामना कर सके। शिशुपाल की सारा सेना तितरबितर हो गई। वीर रूप्यकुमार ने देखा कि उसकी सेना पलायन कर रही है, तो उसने सन्मुख आकर बलदेव का सामना किया। उसने क्रोधित होकर बलदेव पर एक तीक्ष्ण बाण छोडा। किन्तु वज्र-कवच के कारण बलदेव आहत नहीं हो सके, पर बलदेव की क्रोधाग्नि भभक उठी। उन्होंने बड़ी वीरता के साथ रूप्यकुमार से युद्ध किया। दोनों योद्धा दीर्घ अवधि तक संग्राम करते रहे। तब बलदेव ने रूप्यकुमार पर नागपाश-बाण छोड़ा, जिसने रुप्यकुमार को नख-से-शिख तक बाँध लिया। बलदेव ने उसे रथ से उठा लिया एवं लाकर रुक्मिणो को सौंप दिया एवं कहा-'अब इससे मक्खियाँ उड़वाओ।' उस ओर श्रीकृष्ण भी शिशुपाल के साथ भयङ्कर युद्ध कर रहे थे। प्रारम्भ में उन्होंने सामान्य अस्त्रों से युद्ध किया। तत्पश्चात् वे देवोपुनीत शस्त्रों से युद्ध करने लगे। जब इधर युद्ध चल रहा था, उस समय प्रसन्न होकर कलह-प्रेमी नारद आकाश में नृत्य कर रहे थे। इस प्रकार दोनों ओर से घोर युद्ध होता रहा। अन्त में श्रीकृष्ण ने अपने बहुमुखी रणकौशल से दानवीर, स्वाभिमानी, भयङ्कर, कुलीन, रौद्र परिणामी एवं क्रोधो शत्रु को शस्त्र-विहीन कर उसका वध उसी प्रकार कर दिया, जिस प्रकार सिंह गजराज को नष्ट कर देता है। सत्य ही है, पुण्य-क्षय होने पर विनाश अनिवार्य होता है। कुण्डनपुर को युद्ध-भूमि निहत अश्वों एवं खण्डित नर-मुण्डों से अति भयङ्कर प्रतीत होने लगी। सारी भूमि रक्त-धारा से रक्तिम हो रही थी। गजराजों के कुम्भस्थल से निकलती हुई रक्त की। ___26 / धारा में डूबे हुए रथों से मानो विभिन्न दिशाओं का मार्ग अवरुद्ध हो गया था। ___मदोन्मत्त शत्रुओं को विध्वस्त कर श्रीकृष्ण एवं बलदेव रुक्मिणो के निकट आये। रुक्मिणी संकोच से अवनत हो रही थी। उसने नम्रतापूर्वक श्रीकृष्ण को नमस्कार कर कहा-'हे नाथ ! आप अपूर्व पराक्रमी Jun Gun Aaradhak Trust W
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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