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________________ P.P.AC.Gurmanasun MS. सामान्य से आशीर्वाद प्राप्त करते हुए प्रद्युम्न गिरनार पर्वत पर जा पहुंचा। समवशरण तक पहुँचने के पूर्व ही कुमार गजराज से उतर गया तथा राज्य विभूतियाँ त्याग दी। पूर्व के प्राप्त षोडश लाभों तथा श्रेष्ठ विद्याओं का भी उसने परित्याग कर दिया। वह समग्र इष्टजनों को नमस्कार कर समवशरण में जा पहुँचा। समवशरण में ||288 आते हुए असुरों की विपुल संख्या थी। प्रद्युम्न ने भगवान को नमस्कार करते हुए कहा- 'हे नाथ ! आप | भव समुद्र से पार लगानेवाले हैं, आप के द्वारा भक्तों के कष्ट दूर होते हैं। अतएव जन्म-जरा-मृत्यु को विनष्ट करनेवाली दीक्षा मुझे प्रदान कीजिये।' प्रद्युम्न ने अपने समस्त आभूषण उतार दिये तथा केशों का लोंच कर लिया, समस्त लौकिक परिग्रह त्याग कर अनेक राजाओं के साथ दीक्षा ली। अब वह सर्वगुण-सम्पन्न प्रद्युम्र संसार-मोह से अत्यन्त विरक्त हुआ। भानुकुमार ने भी विरक्ति से समस्त विभूतियों का परित्याग कर दीक्षा ले ली। भानुकुमार के अकस्मात् दीक्षित हो जाने से कुटुन्बीजनों को गहन विषाद हुआ। तत्पश्चात् सत्यभामा,रुक्मिणी, जाम्बुवन्ती आदि रानियों ने भगवान की सभा में उपस्थित होकर राजमती आर्थिका के समीप दीक्षा ली। वे अपने हृदय के राग का प्रक्षालन कर घोर तप करने लगीं। इधर प्रद्युम्न भी उत्कृष्ट तप में संलग्न हुआ। फलस्वरूप उसके गुणों की चर्चा सर्वत्र होने लगी। __ षोडश सर्ग मुनि प्रद्युम्न ने घोर तप किया। उन्होंने सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र संयुक्त होकर देव-गुरु-शास्त्र की भक्ति करते हुए अनेक लब्धियाँ प्राप्त कर ली। वे एक दिवस से प्रारम्भ कर मास पर्यंत तक के उपवास करते थे। उनके राग-द्वेष, क्रोधादिक कषाय नष्ट हो गये। जिनागम में मुनियों के आहार के लिए 32 ग्रास कहे गये हैं। वे उन्हें घटाते हुए ऊनोदर तप करते थे। इनके अतिरिक्त जैन शास्त्रों में सिंह विक्रीड़ित, हारबन्ध, वज्रबन्ध, धर्मचक्र, बाल आदि विभिन्न प्रकार के काय-क्लेश तप कहे गये हैं, उन्हें भी वे करते थे। वे घृत, गुड़, तेल, दही, शक्कर, नमक आदि षटरस का त्याग कर देह (काया) रक्षा की दृष्टि से शुद्ध आहार लेते थे। प्रद्युम्न ने | जैसा दुर्द्धर तप किया, उसका वर्णन हमारी तुच्छ लेखनो द्वारा कदापि सम्भव नहीं है। मृगादि जीवों से रहित प्रासुक स्थान में मुनि प्रद्युम्न 'विविक्त शैय्यासन' नामक तप करते थे। वे वर्षा !! Jun cuna .
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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