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________________ P.P.Ad Gunanasuti MS युक्त वचनों से पिता को समझा कर तथा अपने राजपद पर प्रिय अनुज शम्भुकुमार को नियुक्त करवा कर प्रद्युम्न अपनी माता के महल में गया। __ माता को साष्टाङ्ग प्रणाम कर प्रद्युम्न ने कहा-'हे माता ! अपने बाल्यकाल से अब तक के किये हुए || 186 अपराधों की मैं क्षमा माँगने आया हूँ! मैं पुत्र हूँ! क्षमा करना आप का कर्तव्य है। आज से मैं दिगम्बरी मुनियों के व्रत ग्रहण करने जा रहा हूँ। वे व्रत काम रूपी ईंधन को भस्म करने के लिए दावानल के सदृश हैं। हे माता ! आप को प्रसन्नतापूर्वक आज्ञा देनी चाहिये।' प्रद्युम्न के वचन सुन कर रुक्मिणी मूच्छित हो कर गिर पड़ी। जब सचेत हुई, तो उसने कहा-'क्या इस दुःखिनी माता का त्याग कर तेरा प्रस्थान उचित है ? यदि तू दीक्षा के लिए उद्यत है, तो अपनी माता को क्यों दुःखी करता है ?' माता को दुःखी देख कर प्रद्युम्न कहने लगा—'हे प्रिय जननी! आप इस अनित्य संसार को स्थायी समझ रही हैं। किन्तु क्या यह नहीं ज्ञात है कि जीव को अकेले ही अपने कर्म फल भोगने पड़ते हैं। इसलिये विवेकी पुरुष किसी के विच्छेद से शोक नहीं करते। यह मोह ही दारुण दुःख का प्रदाता है। जन्म के उपरान्त मृत्यु, यौवन के उपरान्त वृद्धावस्था, स्नेह के उपरान्त दुःख निश्चित है। इन्द्रिय के विषय-भोग विष के सदृश दुःखदायी हैं। इसलिये सुकृत करने का यत्न करनेवाले व्यक्ति का निषेध करना, उसके साथ शत्रुता करना है। अतः हे मातुश्री ! आप अब शोक त्याग कर मुझे दीक्षा लेने के लिए अपनी आज्ञा प्रदान करें।' पुत्र के वचन सुन कर रुक्मिणी का मोह विनष्ट हो गया। उसने कहा- 'हे पुत्र ! मैं पुत्र-वधू एवं पुत्र के मोह से भ्रमित थी। अब मेरा मोह तिरोहित हो गया है। इस विषय में तुम मेरे गुरु के समतुल्य हो / अब मुझे भी ज्ञात हो गया कि समस्त सांसारिक पदार्थ क्षणभंगुर हैं / तप तथा संयम ही संसार में ध्रुव सत्य हैं / विषयों की प्रीति अवश्य ही विनाश की ओर ले जानेवाली है। यदि सांसारिक विषयों में लेशमात्र भी तत्व होता, तो श्री आदिनाथ तीर्थङ्कर आदि महापुरुष उससे विरक्त ही क्यों होते ? यदि कुटुम्बीजनों का सङ्ग शाश्वत होता, तो सम्राट भरत तपस्या के लिए क्यों प्रस्तुत होते ? अवश्य ही तुझे मोक्ष का सुख प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करना चाहिये। मैं अब तेरा निषेध नहीं कर रही, वरन् स्वयं भी दीक्षा लेने का विचार कर रही हूँ।' - माता के कथन से कुमार को अपूर्व प्रसन्नता हुई। फिर उसने अपनी पत्नियों को समझाया- 'यह जीव Jun Gun Aaradhakut 186
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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