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________________ 185 P.P.AC.GurranasuriM.S. थे। फिर भी उनके हृदय में शङ्का की छाया दृष्टिगोचर हो रही थी। अकस्मात् सभा में उनके विद्या-विशारद पुत्र कुमार प्रद्युम्न का आगमन हुआ। वह अपने पिता तथा स्वजनों को नमस्कार कर योग्य सिंहासन पर बैठा। उसका चित्त विषय-वासनाओं से विरक्त हो रहा था। जब अन्यान्य चर्चायें समाप्त हो गयीं, तो कुमार ने करबद्ध निवेदन कर अभयदान की प्रार्थना की। उसने कहा-'हे पूज्य पिताश्री ! आप की कृपा से ममे भोगोपभोग की समस्त सामग्रियाँ उपलब्ध हैं, किन्तु ये समग्र वस्तुएँ नश्वर हैं। इसलिए आप प्रसन्नतापर्वक आज्ञा दें, जिससे मैं इस दुःख के कारणभूत संसार-भ्रमण से मुक्त होने हेतु जिनेन्द्र भगवान से दीक्षा ले लँ।' प्रद्युम्न की अभिलाषा सुन कर समस्त सभा शोकमग्न हो गयी। गुरुजन मूच्छित हो गये। सचेत होने पर उन्होंने स्नेह से समझाया- 'हे पुत्र ! क्या तुम इतने कठोर हो गये हो ? बन्धुवर्गों को सन्त्रस्त करनेवाले ऐसे वचन तुम्हारे मुख से कैसे निकलते हैं ? हे वीर! अभी तुम युवा हो। तुम्हें भोगों को भोगना चाहिये। यह समय संयम का नहीं है, तुम दीक्षा के योग्य नहीं हो / यद्यपि श्री जिनेन्द्र भगवान ने कहा है, फिर भी तुम्हें व्यर्थ में भयभीत नहीं होना चाहिये। तुम विद्वान, चतुर एवं श्रेष्ठ हो। इसलिये तुम्हारा दीक्षा ग्रहण करना युक्तियुक्त नहीं होगा।' __बन्धुओं का मलीन मुख देख एवं उन्हें विषादयुक्त लक्ष कर प्रद्युम्न ने कहा- 'हे पूज्य वर्ग। केवली भगवान के वाक्य कभी मिथ्या नहीं हो सकते, पर उस हेतु मुझे किंचित् भो भय नहीं है। कारण अपने कर्मों के बन्ध के अतिरिक्त मनुष्य को भय किस वस्तु का ? संसार में शत्रु-मित्र कोई अपना नहीं है। अगणित भवों में अगणित मित्र हो जाते हैं। इस अवस्था में किन बन्धुओं के साथ स्नेह किया जाय ? इसलिये आप महानुभावों को दःख नहीं करना चाहिये।' प्रद्युम्न की ऐसी मार्मिक तत्व विवेचना से श्रीकृष्ण का कण्ठ भर आया। तब गणी प्रद्यम्न ने कहा-'हे तात ! आप उपदेष्टा होकर क्यों शोक करते हैं ? क्या आपको भी बताने की आवश्यकता पड़ेगी कि आयु क्षीण होने पर मृत्यु जीव का भक्षण कर लेती है उसके लिए कुमार, युवा, वृद्ध, मर्ख, पण्डित, कुरूप एवं सुन्दर सब समतुल्य हैं / क्या युवा एवं चतुर होने के कारण मृत्यु से मुझे त्राण मिल जायेगा? यदि ऐसा ही है, तो आप कृपया बतलायें कि भरत चक्रवर्ती का पुत्र एवं सुलोचना का पति मेघेश्वर, आदिनाथ भगवान का प्रतापी पुत्र भरत चक्रवर्ती तथा आदित्यकीर्ति आदि कहाँ चले गये?' ऐसे ही वैराग्य Jun Gan Aaradhak Trust 24
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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