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________________ पर जा बठ। उनक वराग्य-धारण स इन्द्रा का सिहासन प्रकाम्पत हा उठ।। व सब सदल-बल द्वारका जा पहुँचे एवं बड़े उत्सव के साथ भगवान का अभिषेक किया। कल्पवृक्ष के पारिजातादि पुष्पों से पूजित एवं शताधिक स्तुतियों से वन्दित भगवान श्री जिनेन्द्र पालकी पर आरूढ़ हुए। राजागण स्वयं पालको उठा कर 277 सात पैंड तक चले। पुनः देवगण उन्हें आकाश-मार्ग से ले गये। द्वारिका के नर-नारी तथा विद्याधर सब-के-सब शिविका के पीछे दूर तक गये। जब वधू राजमती को यह सम्वाद मिला, तो वह भी विलाप करती हुई शिविका का अनुगमन करने लगी। श्री जिन भगवान ने सहस्रार वन में जाकर मस्तक के समस्त केशों का मात्र पञ्चमुष्टिका से लोंच कर लिया। उन्होंने 'ॐ नमः सिद्धेभ्यः' कह कर समस्त आभरणादिक का त्याग किया। उस समय 'धन्य-धन्य' कह कर उपस्थित समस्त सुर एवं असुर उनकी स्तुति करने लगे। श्री जिनेन्द्रदेव मुनीन्द्र होकर ध्यान में स्थित हो गये। उनके साथ एक हजार राजाओं ने भी दीक्षा ले ली अर्थात् वे भी मुनि होकर तप करने लगे। इन्द्र ने भगवान के उपाड़े हुए केशों को क्षीरसागर में प्रवाहित कर दिया तथा तृतीय (तप) कल्याणक पूर्ण कर वह अपने स्थान को लौट गया। तीसरे दिवस श्री जिन भगवान ध्यान से उठे। उन्होंने द्वारिका में आकर ब्रह्मदत्त के यहाँ विधिपूर्वक पारणा की। देवों ने ब्रह्मदत्त के घर पञ्च-आश्चर्यों की वर्षा की। योगिराज नेमिनाथ पुनः रैवतक पर्वत पर लौट आये। राजमती भी विलाप करती हुई घर लौट गयी। उसने जब देखा कि नेमिनाथ दीक्षित हो गये हैं, तो उसने भी संयम से रहने का व्रत ले लिया। पिता ने समझाया'ऐसा मत करो। मैं किसी अन्य योग्य राजपुत्र के संग तुम्हारा पाणिग्रहण करवा दूंगा।' किन्तु राजमती कहने लगी-'हे पिताश्री ! श्री नेमिनाथ के अतिरिक्त अब अन्य सभी पुरुष मेरे लिए पिता तुल्य हैं।' पुत्री का ऐसा निश्चय सुन कर राजा उग्रसेन मौन रह गये। राजमती श्री नेमिनाथ का अहर्निश ध्यान करने लगी। च श्री नेमिनाथ ने आत्म- ध्यान के प्रभाव से घातिया कर्मों का विनाश किया। वे ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, मोहनीय एवं अन्तराय कर्मों को नष्ट कर केवलज्ञानी हुए-यह महान कल्याणक ध्यानस्थ होने के छप्पन दिवस उपरान्त हुआ। केवलज्ञान के प्रभाव से इन्द्रों का आसन कम्पायमान हो उठा। वे देव-देवाङ्गनाओं त्र के सङ्ग पुष्प-वर्षा करते हुए रैवतक पर्वत पर आये। कुबेर ने समवशरण की रचना की। उसने पृथ्वी से पाँच हजार धनुष के ऊपर एक लम्बी-चौड़ी पीठिका प्रस्तुत की, जिसकी भूमि वज्र की बनी हुई थी तथा / 177 23
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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