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________________ P.PAC Gurvalasuri MS दवको, रोहिणी, सत्यभामा, रुक्मिणी आदि रानियों ने मङ्गल-विधान सम्पन्न किये। किन्तु जब शिवादेवी भारती उतारने लगी, तब दीपक की लौ से उनका वस्त्र जलने लगा। शायद इस महोत्सव को रोकने के लिए वह जल उठा हो। श्री नेमिनाथ के रथ पर आरूढ़ होने के पश्चात् एक बिल्ली उनका मार्ग काट गयी, फिर भी | 276 | बरात रुकी नहीं, आगे बढ़ गयी। बरात के साथ समुद्रविजय, वसुदेव, श्रीकृष्ण, प्रद्युम्र, भानु, सुभानु आदि सब राजागण चले / बरात राजा उग्रसेन के राजमहल के द्वार पर जा पहुँची, तब झरोखे में बैठी हुई वधू राजमती ने वर श्री नेमिनाथ के दर्शन किये। उन पर छत्र, चँवर आदि दुर रहे थे। जब श्री नेमिनाथ का रथ तोरण के समीप आ पहुँचा, तो उन्हें दीन पशुओं का करुण आर्तनाद सुनायी दिया। उन्होंने रथ पर से देखा कि तोरण के निकट हो एक बाड़े में पशु घिरे हुए हैं। करुणा की मूर्ति सारथी कहने लगा- 'हे नाथ ! ये पशु आपके विवाह के लिए ही एकत्रित किये गये हैं। आज मध्य रात्रि में इन सब का वध किया जायेगा एवं बरात में जो माँसाहारी अतिथि आये हुए हैं, उनके लिए भोजन इनके माँस से प्रस्तुत किया जायेगा। यह कार्य महाराज श्रीकृष्ण की आज्ञा के अनुसार ही हुआ है।' सारथी के कथन से Jun Gun Aaradhak Trust वध से कितना घोर पाप लगेगा ? प्राणियों का वध करनेवाले नरकगामी होंगे। जो काँटा गड़ने के भय से चरण में पादुका पहिनते हैं, वे दया रहित होकर पशुओं का वध कैसे करेंगे ? इससे यह सिद्ध हो रहा है कि विवाह-फल संसार की वृद्धि है एवं संसार वृद्धि से पाप का बन्ध होता है। ऐसा चिन्तवन कर श्री नेमिनाथ ने रथ को आगे बढ़वाया एवं बाड़े में जितने पशु घिरे थे, उन्हें मुक्त कर दिया। फिर वे स्वयं वर के वेश का परित्याग कर बिना विवाह किये ही लौट पड़े। उन्हें इस प्रकार जाते हुए देख कर सब को अपार आश्चर्य हुआ— सर्वत्र गहन व्याकुलता छा गई। श्री नेमिनाथ लौकान्तिक देवों के साथ द्वारिका जा पहुंचे। वे देवगण अपने नियोग की पूर्ति के लिए वहाँ आ गये थे। भगवान के वन जाते समय नारायण श्रीकृष्ण ने उन्हें बहुत रोका। माता-पिता ने भी रोका, पर अब उनके समझाने का कुछ भी फल न हुआ। उन्होंने सबको सम्बोधित किया एवं अपने लिए देव-प्रदत्त सिंहासन 176
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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