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________________ P.P.Ad Gunanasuti MS चाण्डाल का वेश धारण कर कुण्डनपुर की राजसमा म जा पहुँचे। वे सुन्दर तो थे ही। उन्होंने पिनाकी लेकर गाना प्रारम्भ किया। उनका गायन इतना मधुर हुआ कि रूप्यकुमार तक सुन कर मोहित हो गया। उसने मनोवांछित पुरस्कार देने की स्वीकृति दे दी। अभी समस्त राजसभा इनके गायन में तन्मय थी, इस अन्तराल | 272 में प्रद्युम्न ने अपनी विद्याओं को अन्तःपुर में भेज दिया। विद्याओं के द्वारा कन्याओं का अपहरण हो गया। पीछे प्रद्युम्न सभा से निकल कर बाहर आये एवं कन्याओं को संग लेकर आकाश में जा पहुँचे। वहाँ से रूप्यकुमार को सम्बोधित करते हुए कहा-'हे भीष्म-पुत्र ! मैं श्रीकृष्ण का पुत्र हूँ। मैं ने आप की कन्याओं का अपहरण किया है। यदि आप में बल हो, तो मुक्त करा लीजिये।' रुप्यकुमार समस्त सेना ले कर युद्ध के लिए प्रस्तुत हुआ। किन्तु बुद्धिमान मन्त्रीगण उसे समझा-बुझा कर शीघ्र लौटा लाये। प्रद्युम्नकुमार एवं शंभुकुमार उन कन्याओं को लेकर द्वारिका आ पहुँचे। प्रद्युम्र ने बड़े समारोहपूर्वक अनुष्ठानादि सम्पन्न कर शंभुकुमार का विवाह करवाया। समस्त नगरी में बधाईयाँ बजीं। अनुज के विवाह से प्रद्युम्न को जो प्रसन्नता हुई, वह अपूर्व थी। होना भी ऐसा ही चाहिये था। कुछ काल के उपरान्त प्रद्युम्र का रात स आनरुद्ध नाम का एक पुत्र उत्पन्न हुआ। वह क्रमशः बाल्यावस्था पूर्ण कर यौवनावस्था को प्राप्त हुआ। शंभुकुमार के भी एक शतक पुत्र उत्पन्न हुए। कुमार अपने परिवार के साथ देवोपम सुख भोगने लगे। वह अपनी मनोकामना के अनुसार उद्यानादि स्थानों में अपनी पत्नियों के साथ क्रीड़ा करता था। प्रद्युम्न के सुख का वर्णन नहीं किया जा सकता। विभिन्न ऋतुओं में वह विभिन्न प्रकार से आनन्द का उपभोग करता था। हेमन्त में कर्पूरादि सुगन्धित द्रव्यों के उष्ण धूम्र में आनन्द क्रीड़ा कर दर्शकों पर अपना पुण्य-फल प्रकट करता था, शिशिर में उन्मत्त कामिनियों के संस्पर्श से शीत का निवारण करता था। जब वसन्त ऋतु उसके स्वागत के लिए आती थी, तब वह सुगन्धित जल से परिपूर्ण वापिकाओं में अपनी प्रिय पत्नियों के साथ विहार करता था। इसी प्रकार ग्रीष्म एवं वर्षा में भी वह ऋतु के अनुकूल विहार करता था, तो कभी शरद ऋतु में पत्नियों के संग चन्द्र-ज्योत्सना का सेवन कर पुण्य-फल दर्शाता था। तात्पर्य यह कि प्रत्येक ऋतु में प्रत्येक दिन उसे सुख ही उपलब्ध था। उसके मस्तक पर सदैव छत्र बना रहता था। पार्श्व से भृत्यगण चँवर दुराते रहते थे। विद्वान, देव, विद्याधर तथा भूमिगोचरी राजा उसकी सेवा में तत्पर Jun Gun Aaradhak Trust 172
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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